सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी रिव्यू: क्या यह रोमांटिक कॉमेडी दर्शकों का दिल जीत पाई?

क्या आप भी उन दर्शकों में से हैं जो एक अच्छी रोमांटिक कॉमेडी की तलाश में हैं? क्या आप सोच रहे हैं कि इस त्योहारी सीजन में 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' सिनेमा घर जाकर देखने लायक है या नहीं? अगर हाँ, तो आप बिल्कुल सही जगह पर हैं।

सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी रिव्यू: क्या यह रोमांटिक कॉमेडी दर्शकों का दिल जीत पाई?

आज हम बात करने वाले हैं डायरेक्टर शशांक खेतान की नई फिल्म 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' की, जिसमें वरुण धवन और जान्हवी कपूर मुख्य भूमिकाओं में नज़र आ रहे हैं। यह फिल्म एक ऐसे दौर में रिलीज़ हुई है जब हिंदी सिनेमा में रोमांस और कॉमेडी की बाढ़ सी आई हुई है, लेकिन कोई भी फिल्म दर्शकों के दिलों पर राज नहीं कर पा रही है।तो क्या यह फिल्म इस ट्रेंड को तोड़ पाई है? चलिए, विस्तार से जानते हैं।

कहानी: दो टूटे दिल और एक शादी तोड़ने की साज़िश

फिल्म की कहानी एक बेहद सरल और सीधे-सादे फ़ॉर्मूले पर आधारित है। हमारा हीरो है सनी संस्कारी (वरुण धवन), जो अपनी जिंदगी को एक हैपी-गो-लकी अंदाज़ में जीता है। वह अपनी गर्लफ्रेंड अनन्या (सान्या मल्होत्रा) से बेपनाह मोहब्बत करता है। दो साल के रिश्ते के बाद, वह उसे शादी का प्रपोजल देने ही वाला होता है कि एक झटके में सब कुछ बदल जाता है।

अनन्या उसे यह कहते हुए छोड़ देती है कि वह एक बिजनेस टाइकून चिराग विक्रम (रोहित सराफ) से शादी कर रही है, क्योंकि उसके परिवार को लगता है कि सनी उसके लायक नहीं है।

दूसरी तरफ, विक्रम भी अपने परिवार के दबाव में आकर अपनी 12 साल की प्रेमिका तुलसी कुमारी (जान्हवी कपूर) को छोड़ चुका है। यहाँ से शुरू होती है दो टूटे दिलों की जोड़ीदारी। सनी और तुलसी मिलकर एक प्लान बनाते हैं: विक्रम और अनन्या की होने वाली डेस्टिनेशन वेडिंग को तोड़ना, ताकि वे दोनों अपने खोए हुए प्यार को दोबारा पा सकें। क्या उनकी यह चाल कामयाब होती है? इस सवाल का जवाब आपको फिल्म देखकर ही मिलेगा।

निर्देशन और कहानी की गहराई: क्या यह फिल्म अपने लक्ष्य तक पहुँच पाती है?

डायरेक्टर शशांक खेतान ने 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' और 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं, इसलिए दर्शकों की उम्मीदें naturally बहुत ऊँची थीं। लेकिन इस बार, उनकी कोशिश पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाई है।

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है इसकी पतली और पूर्वानुमेय (predictable) कहानी। आप फिल्म के पहले ही आधे घंटे में अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है। शशांक ने इसमें रिलेशनशिप बनाम सिचुएशनशिप जैसे एंगल्स जोड़ने की कोशिश की है और कुछ सामाजिक मुद्दों जैसे शादी में महिलाओं की निजता को भी छुआ है, लेकिन ये सभी विषय सतही ही रह गए हैं और उन्हें गहराई से एक्सप्लोर नहीं किया गया।

हालाँकि, अगर आप सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन चाहते हैं, तो फिल्म पूरी तरह से निराश नहीं करती। शादी के रंगीन माहौल, ग्रैंड लोकेशन्स, चटखीले कॉस्ट्यूम्स और धूमधाम से भरे डांस नंबर्स ने फिल्म को एक ग्लैमरस और चमकदार लुक दिया है, जो करण जौहर की फिल्मों की याद दिलाता है।

टेक्निकल एस्पेक्ट्स: आँखों का त्योहार, लेकिन कानों का नहीं

तकनीकी रूप से, फिल्म काफी दमदार है। मानुष नंदन की सिनेमैटोग्राफी शानदार है और हर फ्रेम एक पोस्टकार्ड की तरह सुंदर लगता है। सेट्स, locations और costumes सब कुछ बड़े बजट की झलक देते हैं।

लेकिन, संगीत के मामले में फिल्म थोड़ी कमजोर पड़ जाती है। कई म्यूजिक डायरेक्टर्स के होने के बावजूद, सिर्फ 'पनवाड़ी' गाना ही याद रह पाता है, बाकी गाने जल्दी ही भुला दिए जाते हैं।

पटकथा की बात करें तो पहला हाफ काफी सुस्त चलता है और इंटरवल के बाद ही कहानी में थोड़ी रफ्तार आती है। क्लाइमैक्स में एक ट्विस्ट है जो दिलचस्प लगता है, लेकिन इमोशनल पंच की कमी की वजह से वह असर नहीं छोड़ पाता।

परफॉर्मेंस: किसने मारा हिट और किसने मिस किया?

  • वरुण धवन: रोम-कॉम है तो वरुण धवन हैं! वे फिल्म की रीढ़ की हड्डी हैं और अपने किरदार में पूरी तरह से घुल-मिल गए हैं। कॉमेडी, रोमांस, डांस - हर जगह वे परफेक्ट हैं।
  • जान्हवी कपूर: तुलसी कुमारी के रोल में जान्हवी ने ईमानदारी से काम किया है और स्क्रीन पर खूबसूरत भी नज़र आई हैं। उनकी एक्टिंग में पहले से ज़्यादा पकड़ नज़र आती है।
  • सान्या मल्होत्रा: उन्होंने अनन्या के किरदार के साथ न्याय किया है, लेकिन दुर्भाग्य से उनके किरदार को लिखा ही कम गया है, जिससे वह पूरी तरह से उभर नहीं पाई हैं।
  • सहायक कलाकार: रोहित सराफ अपनी क्यूटनेस के साथ छाए रहे। मनीष पॉल ने वेडिंग प्लानर के रोल में कॉमेडी के कुछ बेहतरीन पल दिए हैं। अक्षय ओबेरॉय ने भी अपने रोल में अच्छी छाप छोड़ी है।

अंतिम फैसला: क्या आपको यह फिल्म देखनी चाहिए?

अगर आप हल्की-फुल्की, रंग-बिरंगी और बिना दिमाग लगाए देखी जाने वाली एक टाइमपास एंटरटेनर फिल्म की तलाश में हैं, तो 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' आपके लिए है। यह फिल्म आपको 2 घंटे के लिए अपनी रियल लाइफ की टेंशन से दूर एक रंगीन दुनिया में ले जाएगी।

लेकिन, अगर आप एक मजबूत कहानी, गहरे इमोशन्स और यादगार किरदारों की उम्मीद लगाकर सिनेमा घर जा रहे हैं, तो आपको थोड़ी निराशा हो सकती है। यह फिल्म शशांक खेतान के पिछले काम जैसी यादगार नहीं बन पाई है। रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5 Stars)

निष्कर्ष

'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' एक देखी-जा-सकने-वाली फिल्म है जो अपने शानदार विजुअल्स और वरुण धवन के कॉमिक टाइमिंग की बदौलत चलती है। यह फिल्म आपको गहराई से छूने का दावा नहीं करती, लेकिन अगर आपका मूड हल्का-फुल्का है और आप कुछ हंसी-मजाक के साथ एंटरटेन होना चाहते हैं, तो यह आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी। आखिरकार, कभी-कभी सिर्फ एक अच्छा टाइमपास ही तो चाहिए होता है, है ना?

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Sumit Mishra

By Sumit Mishra

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