"हम पढ़े-लिखे, प्रोग्रेसिव लोग हैं। हम मॉडर्न लोग हैं, समझते हैं..." ये वही लाइन है जिसे ओढ़कर कितने ही भारतीय परिवार अपनी असली भावनाओं को छुपाते हैं।

दे दे प्यार दे 2 इसी झूठी 'आधुनिकता' के पर्दाफाश पर एक मजेदार, चुटीली और दिल छू लेने वाली कॉमेडी है जो आपको हंसाते-हंसाते सोचने पर मजबूर कर देती है।
कहानी: जब 'मॉडर्न' पेरेंट्स की परीक्षा होती है
पहली फिल्म में, 50 साल के आशीष (अजय देवगन) को अपनी उम्र से आधी लड़की आयशा (रकुल प्रीत सिंह) से प्यार हो जाता है। दे दे प्यार दे 2 में यह प्रेम कहानी अब आयशा के घर पहुंचती है। आयशा के माता-पिता राजेश (आर. माधवन) और शालिनी (गौतमी) खुद को पूरी तरह आधुनिक और प्रगतिशील बताते हैं। वे एक-दूसरे को प्यार से 'राज जी' कहकर बुलाते हैं और उनकी अपनी भी लव मैरिज हुई थी। लेकिन जब उनकी बेटी एक ऐसे आदमी से शादी करना चाहती है जो उन्हीं की उम्र का है, तो उनकी सारी 'आधुनिकता' की पोल खुलने लगती है। क्या वाकई में यह कपल इतना प्रोग्रेसिव है? या फिर उनकी 'मॉडर्निटी' सिर्फ दिखावा है? यही सवाल इस फिल्म की धड़कन बनता है।
माधवन और गौतमी: प्रोग्रेसिविज्म का ढोंग और उसका पर्दाफाश
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं माधवन और गौतमी। माधवन का किरदार बाहर से तो बेहद आधुनिक दिखता है - वह अपनी प्रेग्नेंट बहू का ख्याल रखता है, घर के कामों में हाथ बंटाता है। लेकिन जब बात अपनी बेटी के 50 साल के बॉयफ्रेंड की आती है, तो उनका सारा प्रोग्रेसिव बर्ताव कपूर की तरह उड़ जाता है।
एक दृश्य में तो वे 90s की फिल्मों के अमरीश पुरी जैसे बाप बन जाते हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि वे 'मॉडर्न' हैं इसलिए सीधे विरोध करने की बजाय मैनिपुलेट करते हैं। यहीं पर फिल्म अपनी सबसे मजेदार और सटीक टिप्पणी करती है।
लव रंजन स्टाइल कॉमेडी: सेल्फ-अवेयर और पंच से भरपूर
अगर आपको लव रंजन की फिल्मों की कॉमेडी पसंद है, तो यह फिल्म आपको बिल्कुल निराश नहीं करेगी:
- जावेद जाफरी क्रेडिट्स के साथ ही पिछली फिल्म का एक मजेदार रीकैप देते हैं
- अजय देवगन की अपनी ही फिल्मों सिंघम और हम आपके हैं कौन का हंसी-मजाक में जिक्र
- मीजान जाफरी (जावेद के रियल लाइफ बेटे) का एक मजेदार रोल जिसे आयशा को पटाने के लिए उसके पिता ने लगाया है
- पूरी फिल्म में छितरे हुए ऐसे पंच और डायलॉग जो आपको बार-बार हंसाएंगे
अजय देवगन: दूसरे प्लान में, पर अहम भूमिका
अजय देवगन इस फिल्म में हीरो हैं, लेकिन उनकी भूमिका थोड़ी अलग है। वह एक मैच्योर लवर हैं जो कनफ्लिक्ट से बचना चाहता है। जब आयशा के पिता को दिक्कत होती है, तो वह 'समझदार' बनने की कोशिश करता है।
कई बार तो आपको लगेगा कि फिल्म में अजय हैं ही नहीं, लेकिन यही उनके किरदार की खूबसूरती है। फिल्म सिर्फ आयशा के पेरेंट्स का ही नहीं, बल्कि उसके 'मैच्योर' लवर के धैर्य और प्रेम की गहराई का भी टेस्ट है।
रकुल प्रीत सिंह: सिर्फ खूबसूरत चेहरा नहीं, बल्कि दमदार एक्टर
रकुल को इस फिल्म में एक ऐसा रोल मिला है जहां उन्हें सिर्फ खूबसूरत दिखना ही नहीं, बल्कि एक्टिंग भी दिखानी है। वह उस लड़की का रोल बखूबी निभाती हैं जो अपने पिता के ईगो और अपने लवर के आदर्शवाद के बीच फंसी है। दोनों को बस अपने-अपने आदर्शों पर खरा उतरना है, लेकिन आयशा खुद क्या चाहती है - इसकी परवाह किसी को नहीं।
कहाँ चूक जाती है फिल्म?
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, और दे दे प्यार दे 2 भी कुछ कमियों से अछूती नहीं है:
- इंटरवल के बाद का सेकंड हाफ थोड़ा स्लो लगता है
- कुछ सीन अनावश्यक रूप से लंबे खिंच गए हैं
- गाने फिल्म की पेस को थोड़ा धीमा कर देते हैं
- कुछ जगहों पर किरदार स्टीरियोटाइप लगने लगते हैं
लेकिन इन सबके बावजूद, फिल्म का क्लाइमेक्स इतना शानदार है कि ये सारी छोटी-मोटी कमियां भूला देता है। इस क्लाइमेक्स के बारे में किसी से कुछ न सुनें - सीधे फिल्म देखें!
निष्कर्ष: क्या एक बार देखने लायक है?
बिल्कुल! दे दे प्यार दे 2 सिर्फ एक कॉमेडी फिल्म नहीं है - यह एक स्मार्ट, सेल्फ-अवेयर सोशल कमेंट्री है जो भारतीय परिवारों में 'आधुनिकता' के ढोंग पर करारा प्रहार करती है। मुख्य बातें:
- माधवन और गौतमी की शानदार एक्टिंग
- लव रंजन स्टाइल की मजेदार कॉमेडी
- भारतीय पेरेंटिंग की सच्चाई को बेनकाब करता सोशल मैसेज
- यादगार डायलॉग और पंच सरप्राइज से भरपूर क्लाइमेक्स
अगर आप एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो आपको हंसाए भी और सोचने पर भी मजबूर कर दे, तो दे दे प्यार दे 2 आपके लिए ही है। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि आईना भी है जो हमारे समाज की एक बड़ी सच्चाई को दिखाता है।