कल्पना कीजिए एक ऐसी संपत्ति की जो दशकों से आपके परिवार के नाम है, लेकिन अचानक कोई दावा करे कि यह तो धार्मिक ट्रस्ट की है।
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ठीक इसी तरह के जटिल मामलों को सुलझाने के लिए बना वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 अब सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले के केंद्र में है। आइए, एक अनुभवी मार्गदर्शक की तरह, इस पूरे मामले को सरल शब्दों में समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
सर्वोच्च न्यायालय ने इस नए कानून पर एक संतुलित रुख अपनाया है। कोर्ट ने पूरे अधिनियम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन साथ ही उसके कुछ विशिष्ट प्रावधानों पर अंतरिम रोक भी लगा दी। यानी, कानून का बड़ा हिस्सा लागू रहेगा, लेकिन कुछ चुनिंदा धाराएँ फिलहाल ठप्प रहेंगी।
[सुप्रीम कोर्ट के अनुसार], पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है, लेकिन कुछ प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
किस प्रावधान पर लगी सबसे बड़ी रोक?
सबसे चर्चित और विवादास्पद प्रावधान था वक्फ बनाने वाले व्यक्ति के धर्म से जुड़ा नियम। मूल कानून कहता था कि कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति को वक्फ (धार्मिक ट्रस्ट) घोषित करने के लिए कम से कम 5 साल से मुस्लिम धर्म का पालन करना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस धार्मिक योग्यता (religious eligibility) वाले प्रावधान पर तुरंत रोक लगा दी है। यह रोक तब तक जारी रहेगी जब तक कि राज्य सरकारें यह तय करने के लिए स्पष्ट और पारदर्शी नियम नहीं बना लेतीं कि "कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं"।
क्या गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड का CEO बन सकते हैं?
यह एक और बड़ा मुद्दा था। नए कानून के तहत, गैर-मुस्लिमों को भी वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) नियुक्त किया जा सकता था। इस पर कई याचिकाओं में रोक की माँग की गई।
कोर्ट ने इस प्रावधान पर सीधी रोक तो नहीं लगाई, लेकिन एक मजबूत सिफारिश जरूर की। अदालत ने निर्देश दिया कि "जहाँ तक संभव हो, वक्फ बोर्ड का CEO एक मुस्लिम ही होना चाहिए."
इसका मतलब यह हुआ कि अब भी technically एक गैर-मुस्लिम CEO बन सकता है, लेकिन केवल तभी जब कोई योग्य और उपलब्ध मुस्लिम दावेदार न हो। यह फैसला व्यावहारिकता और धार्मिक स्वायत्तता के बीच एक सामंजस्य बैठाने का प्रयास है।
कोर्ट के फैसले के अन्य अहम बिंदु
आइए, कोर्ट के आदेश के अन्य मुख्य aspects को एक स्पष्ट तालिका में समझते हैं:
| मुद्दा (Issue) | पुराना/नया प्रावधान | सुप्रीम कोर्ट का निर्णय | 
|---|---|---|
| CEO की नियुक्ति | गैर-मुस्लिम भी बन सकते हैं | रोक नहीं, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवार को प्राथमिकता | 
| वक्फ भूमि विवाद का निपटारा | कलेक्टर कर सकते थे | रोक बरकरार, केवल वक्फ ट्रिब्यूनल के पास अधिकार | 
| बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या | अधिकतम 4 (केंद्र), 3 (राज्य) | इस प्रावधान पर कोई रोक नहीं | 
इस फैसले का आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा?
एक आम नागरिक के लिए, यह फैसले कई तरह से महत्वपूर्ण हैं:
- संपत्ति के अधिकार में स्पष्टता: अब कोई भी व्यक्ति बिना किसी धार्मिक 'टेस्ट' के अपनी संपत्ति को वक्फ घोषित करने के बारे में सोच सकता है (कम से कम तब तक जब तक नए नियम नहीं बनते)।
- पारदर्शिता: CEO की नियुक्ति के लिए 'योग्य मुस्लिम उम्मीदवार' की शर्त एक तरह का चेक-एंड-बैलेंस सिस्टम स्थापित करती है।
- विवाद समाधान: विवादों का निपटारा अब सिर्फ विशेषज्ञ ट्रिब्यूनल ही करेंगे, जिससे प्रक्रिया में विशेषज्ञता आएगी।
अंतिम विचार: एक सतत प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश अंतिम नहीं, बल्कि एक चल रही कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। यह फैसला दिखाता है कि भारत का संवैधानिक ढाँचा किस तरह धार्मिक स्वायत्तता और समान नागरिक संहिता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। अगले कुछ महीनों में राज्य सरकारों के नियम बनाने और कोर्ट की अगली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।
 
