पौराणिक कथाओं और मान्यता के अनुसार भगवान शिव के कई 'रुद्रावतार' और 'शिवांश' हुए हैं कुल 7 शिवांशों में मुख्य रूप से अंधक जिसे 'अंधकासुर' भी कहा जाता है, 'जालंधर' और 'लोहितांग' हुए हैं यह तीनों शिवांश असुरों के राजा भी रह चुके हैं, चूंकि असुर शक्तियां होने की वजह से वह अपने पिता अर्थात भगवान से ही द्वेष की भावना रखते थे।
आपको जालंधर और अंधक की कहानी कई जगह पढ़ने को मिलेंगी किन्तु 'लोहितांग' की कहानी विरले ही देखने को मिलती है पौराणिक व्यख्यान के अनुसार लोहितांग एक ऐसा शिवांश था जिसने भगवान शिव को अपने वश में करने के लिए सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड को संगीतमय कर दिया था , आइये जानते हैं भगवान शिव के अंश लोहितांग के बारे में
लोहितांग की कहानी - Lohitang Story
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिदेवों में यह चर्चा हो रही थी कि काल चक्र के अगले पड़ाव में एक और 'शिवांश' का जन्म होने वाला है जिसकी सूचना देवर्षि नारद के पास पहुँचने पर अन्य देवताओं तक भी पहुँच गयी,उन देवताओं में भगवान इंद्र भी थे जिन्हें देवताओं का राजा भी बोल जाता था अर्थात 'देवराज'। देवराज के पास सूचना पहुंचने पर देवराज इंद्र ने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे 'शिवांश' का जन्म ही न हो,इसके पीछे के कारण की बात की जाए तो शिवांश 'जालंधर' और 'अंधक' ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था और अनेकों बार देवताओं पर अत्याचार हुआ जिसकी वजह से इंद्र को इस बात का अंदेशा था कि शिवांश इतने ताकतवर होते हैं कि जीत पाना मुश्किल था, उस समय तक जालंधर की मृत्यु हो चुकी थी और 'अंधक' के पुत्र का वध भगवान शिव ने कर दिया था जिसकी वजह से अंधक भगवान शिव की शरण मे आ गया था किंतु इंद्र को भय था कि कहीं एक और शिवांश का जन्म हुआ तो ऐसे में बहुत प्रलयकारी होगा।
देवराज इंद्र ने शिवांश के जन्म के लिए बनाई थी योजना
देवराज इंद्र ने एक योजना बनायी, उस योजना के अनुसार अगर भगवान शिव को कुछ समय के लिए किसी अन्य कार्य मे विचलित कर दिया जाए उस विशेष समय जिसमें 'शिवांश' जन्म लेगा तो शिवांश का जन्म टल सकता है लेकिन इंद्र शायद इस बात से अनभिज्ञ थे कि नियति को बदलना उनके हाँथ में नही था और फिर त्रिदेवों की कार्यप्रणाली में बाधा डाल पाना इंद्र के वश की बात भी नही थी। देवराज अपनी योजना के अनुसार भगवान शिव के अनन्य भक्त नाट्याचार्य के पास पहुँचे, नाट्याचार्य वह आचार्य थे जिन्हें सारे प्रकार के नृत्यों की विशेष विद्या प्राप्त थी नाट्याचार्य भगवान शिव के निष्काम भक्त थे।
देवराज इंद्र ने नाट्याचार्य से भगवान शिव से कुछ मांगने के लिए कहा लेकिन नाट्याचार्य ने जवाब दिया कि वह निष्काम भक्त हैं उन्हें भगवान शिव से कुछ नही चाहिए और साथ ही यह भी कहा कि भगवान शिव ने उन्हें व सारे विश्व को पहले ही सब कुछ दे चुके हैं फिर मांगने की आवश्यकता क्या है देवराज ने सोचा कि सीधी तरह नाट्याचार्य उनके झांसे में नही आएंगे तो उन्होंने कहा कि आप भगवान शिव से "ताण्डव नृत्य" सीखिए इससे आप पृथ्वी वासियों को भी उस कला को सिखा पाएंगे जिससे भगवान शिव के और भक्त समीप हो जाएंगे इस बात को सुनकर नाट्याचार्य को भी लगा कि बात तो देवराज सही कह रहे हैं और वह भगवान शिव की तपस्या में लीन होने के लिए सज्ज हो जाते हैं।
नाट्याचार्य अर्थात ऋषि तंडू ने की थी तपस्या
नाट्याचार्य की तपस्या में विलीन होते ही कई वर्षों पश्चात भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं और वरदान मांगने के लिए कहते हैं नाट्याचार्य कहते हैं कि मुझे अपने लिए कुछ नही इस जगत तक आपके नृत्य के प्रसाद के रूप में तांडव नृत्य की कला को सीखना चाहते हैं भगवान शंकर उन्हें इस बात से सचेत भी करते हैं कि तांडव काफी प्रलयंकारी है किंतु नाट्याचार्य कहते हैं कि क्या आप मुझे इस योग्य नही समझते की मैं तांडव सीख पाऊं इस पर भगवान शिव उन्हें तांडव की कला सिखाने के लिए राजी हो जाते हैं। नाट्याचार्य 'ताण्डव नृत्य' सीखने वाले पहले मानव थे उसके पहले तक भगवान शिव और उनके परिवार के अलावा इस विद्या से कोई भी परिचित नही था, नाट्याचार्य इस नृत्य को सीखने के बाद ही उनका नाम 'ऋषि तंडु' पड़ा, उन्हें बाद में इसी नाम से जाना गया।
नाट्याचार्य को भगवान शिव ने तांडव नृत्य की शिक्षा दी
नाट्याचार्य को तांडव की शिक्षा देते समय शिव भगवान काफी उग्र हो गए और उस उग्रता का प्रभाव यह पड़ा कि संसार मे प्रलय शुरू हो गयी,यह सब देखने के बाद प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए माता पार्वती ने 'लास्य नृत्य' शुरू कर दिया,तब कहीं भगवान शिव अपनी सामान्य अवस्था को प्राप्त होते हैं। तांडव के प्रचंड रूप में पहुँचने पर भगवान शिव के शरीर से एक 'स्वेद बूँद' निकलकर धरती पर गिरी और उसी बूँद से जन्म होता है 'शिवांश लोहितांग' का, यह सब देखकर देवराज इन्द्र को यह ज्ञान हो जाता है कि जिस कार्य के टालने की योजना वह बना रहे थे असल मे उस कार्य की ओर ले जाने वाली योजना थी।
लोहितांग का जन्म और उसकी देखभाल
लोहितांग के जन्म होने के बाद चूंकि उन्हें सबसे पहले धरती माँ स्पर्श करती हैं इसीलिए धरती माता ने भगवान शिव के अंश को अपने पुत्र के रूप में अपनाना चाहती हैं और इसके लिए भगवान शिव से आग्रह भी करती हैं जिसे भगवान शिव और माता पार्वती स्वीकृति भी दे देते हैं।
यह सब वाक्या चल ही रह था उसी समय 'अंधक' भी पहुंच जाता है चूंकि अंधक को दृष्टि भगवान शिव ने ही प्रदान की थी और सद्मार्ग भी भगवान शिव ने ही दिखाया था इस वजह से वह अनन्य भक्त हो चुका था भक्ति के रूप में वह रावण द्वारा रचित 'शिव ताण्डव श्रोतम' की स्तुति भी करता था, उसने आकर भगवान शिव से आग्रह किया कि लोहितांग को उसे सौंप दें. क्योंकि उसका कोई वारिश भी नही है और भगवान शिव ने अंधक के बेटे का वध पहले ही कर चुके थे. इस बात को मजबूती बनाकर अंधक ने अपना भावनात्मक पक्ष महादेव के सामने रख, अब महादेव ठहरे भोले भंडारी अंधक की बात मानकर उसे लोहितांग को पालने की स्वीकृति दे देते हैं।
महादेव ने लोहितांग को सौंपने के पहले अंधक को चेताया भी कि लोहितांग का जन्म सकारात्मक ऊर्जा से हुआ है तुम लोहितांग को इस लायक बनाओ कि तुम्हारे असुर समाज का कल्याण हो.अंधक पृथ्वी को अपनी माता मानता था इस वजह से 'लोहितांग' अनुज हुआ, और दूसरा शिवांश होने की वजह से भी भाई-भाई का रिश्ता हुआ,भगवान शिव की स्वीकृति और धरती माता से आग्रह कर उस नन्हे बालक लोहितांग को अंधक को सौंप दिया गया।
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निष्कर्ष
आगे की कहानी अगले पार्ट में आएगी उम्मीद है कि भगवान शिव के अंश लोहितांग की कहानी आप सबको पसंद आएगी।