संसार मे जो कुछ भी गतिमान है या भविष्य में त्वरित होने वाला होगा वह सब कुछ नृत्य का ही स्वरूप है। ताण्डव भी एक प्रकृति नृत्य है, भगवान भोलेनाथ कहते हैं कि इसको शुरू करने के पहले जो हमारे अंदर विद्यमान है उसे अनुभव करना पड़ता है।
![महादेव का ताण्डव नृत्य और माता पार्वती का लास्य नृत्य](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPq-ViNrhfHfGjlfKeIVweNu9Xnmh65gdtEB9d3rephx0aMKELHFsilcYIBZAbxH_RKyllMB4J7YsQNV29UwtT5AZY8I0d8b1gDRscFVn_LCY1B9AQhBNS84HBtGWPpaZmwd7XMBDP7IvrrGK2MbPQaELq1SmsebW38qze3ZPTa9cBOPrSRbh6Aw/w640-h356-rw/Shiv%20Tandav%20Dance%20and%20Parvati%20Lashya%20Dance.jpg)
आइये जानते हैं भगवान शिव के तांडव और जगदम्बा स्वरूप माँ पार्वती के लास्य नृत्य के बारे में।
जगत कल्याण में ताण्डव का महत्त्व
तांडव जगत के प्रत्येक घाव को भरता है यह सृष्टि के प्रत्येक चरण की विध्दरूपताओं को नष्ट करता है और सृष्टि को नूतन,पावन, उर्वर और ऊर्जावान करता है। तांडव सृष्टि को संचालित तथा गतिशील बनाये रखने के लिए महादेव का साक्षात आशीर्वाद है।
ताण्डव नृत्य के पाँच चरण
महादेव से उत्पन्न यह नृत्य मानव विकास की तरफ इशारा करता है जिस तरह पञ्च तत्वों से मिलकर शरीर का निर्माण होता है।
![Tandav Ke Charan Tandav Ke Charan](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUVSxAHdTN3-Vo946jMFX-oQ310RadDZOOT0Fkww1k4BZeWcnsdhH2hlr_N-CbJ6hyphenhyphenUVM9n9nZFkmIq_SzI2ec6_S5EkiRKZVo2R8PB_IPqpZbO4VkfF9Pn-kCbLLy24JQjuRVZvXvc8-QgkmS4j8FSD4nZ8pHYya8uB-FJs3UHIibtXRkouE6JrVw/w640-h356-rw/tandav-ke-karan.jpg)
स्थूल से जड़ता का यह नियम ही सृष्टि की प्रकृति है इसी प्रकार इस अद्भुत कला को पञ्च चरणों में बांटा गया है।
- सृष्टि अर्थात उत्पत्ति, निर्माण
- स्थिति अर्थात अवस्था,स्थिरता
- प्रलय अर्थात विनाश, अंत
- तिरोभाव अर्थात अदृश्य जैसे कि वायु
- अनुग्रह अर्थात कृपा,आशीर्वाद।
यह पाँचो चरण जगत के पुरुष प्रभाव को सिंचित करते हैं। भगवान शिव ताण्डव के पञ्च चरणों से प्रकृति के पंचभूतों (अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी,आकाश) को सुव्यवस्थित करते हैं।
ताण्डव नृत्य का स्रोत और शिक्षा
ताण्डव अपने किसी भी स्वरूप में आनन्द ताण्डव होकर इस संसार के लिए सुलभ होता है- पृथ्वी की गतिशीलता, अग्नि की दहकता और प्रचण्डता,समुद्र की लहरों का कोलाहल करना, वायु का आवेग और उसकी जीवणता एकता, आसमान की स्थिरता, नक्षत्रों का प्रकाशमय होना, सूर्य का उदय होना और अस्त होना, चंद्रमा का कृमशः विलुप्त होना और अर्ध होना पूर्ण होना सब ताण्डव ही है। ताण्डव भवति भवतः भवन्ति है। ताण्डव महादेव की उग्र रचना है कविता है। नाट्याचार्य पहले शिवभक्त थे जिन्होंने भगवान शिव से ताण्डव नृत्य का ज्ञान प्राप्त किया था।
13वीं सदी के काव्य संगीतरत्नकर में उल्लिखित है कि नाट्यआचार्य यानी की तांडू ऋषि को आदियोगी शिव जी ने इस श्लोक के माध्यम से इस तांडव नृत्य की शिक्षा दी थी:-
प्रयोगमुद्धतं स्मृत्वा स्वप्रयुक्तं ततो हरः।
तण्डुना स्वगणाग्रण्या भरताय न्यदीदिशत्॥
लास्यमस्याग्रतः प्रीत्या पार्वत्या समदीदिशत्।
बुद्ध्वाऽथ ताण्डवं तण्डोः मत्र्येभ्यो मुनयोऽवदन्॥
इसी को आगे नाट्य आचार्य द्वारा संसार के ऋषि मुनि संतों को शिक्षित किया।
माता पार्वती का लास्य नृत्य
वैसे तो भगवान भोलेनाथ के ताण्डव नृत्य में कोई अपूर्णता नही है किन्तु देवाधिदेव की इस महाकृपा से संसार मे जो विचलन और उथल पुथल होती है उसे माता जगदम्बा स्वरूप पार्वती अपने लास्य नृत्य से सुसज्जित, संतुलित और शोभायमान बना देती हैं,इस प्रकार प्रकृति माता अर्थात पर्वती अपने मूल(प्रकृति) स्वरूप का भलीभाँति निर्वाह करती हैं।
प्रकृति का जगदम्बा स्वरूप
इस लास्य नृत्य के माध्यम से माता पार्वती अपने स्नेहरूपी अमृत तत्त्व को इस ब्रम्हाण्ड में संचारित करती हैं और माता जगदम्बा स्वरूप को प्राप्त करती हैं। महादेव के ताण्डव से उत्पन्न विनाश को केवल माता पार्वती का लास्य नृत्य ही रोक सकता है अथवा संतुलित कर सकता है। माता पार्वती का लास्य नृत्य में भी उनकी शक्ति की सिद्धि है।
जगतपिता भगवान विष्णु का कथन
परमपिता नारायण माता पार्वती के नृत्य के बारे में कहते हैं कि मानो प्रकृति का सृजन हो रहा है भौतिक रूप से संसार जीवंत और आनन्दित हो रहा है वह आगे कहते हैं कि इस नृत्य में देवी पार्वती से अनुपम और कोई नही है
ताण्डव और लास्य: भारतीय नृत्यों की आधारशिला
शिव के रौद्र रूप का कलात्मक सृजन ताण्डव और माता प्रकृति द्वारा किया गया लास्य नृत्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा की अमूल चूक धरोहर है।
जहां ताण्डव तीव्र गति,ताल और अत्यन्त कठोर मुद्राओं वाला है वहीं लास्य अत्यंत सरलता और मधुरता का प्रतीकात्मक और कलात्मकता का संदेश है सही मायने में शास्त्रीय नृत्य के सभी मापदंड,ऊर्जा और मुद्राएं इन दोनो नृत्यों का धूल मात्र है।
समाप्ति
जिस प्रकार से देवी पार्वती केवल जगदम्बा स्वरूप में महादेव के उदताप से समस्त संसार का संरक्षण करती हैं सिंचित करती हैं ठीक उसी प्रकार आवश्यकता पड़ने पर ताण्डव के उदताप को देवी पार्वती का लास्य नृत्य ही नियंत्रित कर सकता है।