एक दीवाने की दीवानियत रिव्यू: हर्षवर्धन का शानदार अभिनय, लेकिन दीवानगी एक अधूरे सपने जैसी

क्या आपने कभी सोचा है कि एक शानदार अभिनेता भी कभी-कभी एक कमजोर कहानी के बोझ तले दब जाता है? एक दीवाने की दीवानियत इस सवाल का जीता-जागता उदाहरण है।

एक दीवाने की दीवानियत रिव्यू: हर्षवर्धन का शानदार अभिनय, लेकिन दीवानगी एक अधूरे सपने जैसी

दीवाली के मौके पर रिलीज हुई यह फिल्म आपको थिएटर तक तो ले जा सकती है, लेकिन वहाँ से निराश लौटने की भी पूरी संभावना है।

कहानी: जब प्यार की दीवानगी बन जाए उपहास

फिल्म की कहानी विक्रमादित्य भोसले (हर्षवर्धन राणे) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक महत्वाकांक्षी राजनेता हैं और मुख्यमंत्री बनने के रास्ते पर हैं। एक दिन उनकी नज़र बॉलीवुड सुपरस्टार अदा रंधावा (सोनम बाजवा) पर पड़ती है और वह पहली नज़र में ही उसके प्यार में पागल हो जाते हैं।

पर यहीं से शुरू होती है समस्याओं की श्रृंखला। अदा को विक्रमादित्य का यह पागलपन बिल्कुल पसंद नहीं आता।

जब विक्रमादित्य का प्यार स्टाकिंग में बदल जाता है, तो अदा एक लाइव शो के मंच से ऐलान कर देती है कि जो कोई भी विक्रमादित्य को "खत्म" करेगा, वह उसके साथ एक रात बिताएगी। यह वह मोड़ है जहाँ से फिल्म की क्रेडिबिलिटी पर सवाल उठने लगते हैं।

प्लॉट में दिखी तार्किक कमियाँ

आज के डिजिटल दौर में, जहाँ एक सोशल मीडिया पोस्ट ही किसी की आवाज़ बन सकती है, वहाँ एक सुपरस्टार का इतना बेबस और लाचार दिखना विश्वसनीय नहीं लगता।

  • पुलिस और प्रशासन की भूमिका पूरी तरह से नदारद है
  • राजनीतिक माहौल जो शुरुआत में दिखाया गया, वह अचानक गायब हो जाता है
  • आधुनिक तकनीक का कोई उपयोग नहीं दिखता
  • चरित्र विकास अधूरा और असंतुलित लगता है

अभिनय: हर्षवर्धन की वह चिंगारी जो बुझने नहीं पाती

अगर इस फिल्म में कुछ सचमुच चमकता है, तो वह है हर्षवर्धन राणे का परफॉर्मेंस। उन्होंने विक्रमादित्य के किरदार में वह दीवानगी और जुनून भर दिया है जो दर्शकों को बांधे रखता है।

सोनम बाजवा सुंदर तो लगती हैं, लेकिन उनके किरदार को लेखन ने पूरा न्याय नहीं दिया है। सचिन खेड़ेकर और शाद रंधावा जैसे कलाकारों की प्रतिभा का सही उपयोग नहीं हो पाया है।

तकनीकी पक्ष: संगीत बचाता है मगर...

फिल्म का संगीत और गाने वास्तव में कमाल के हैं। टाइटल ट्रैक से लेकर सभी गाने मनमोहक हैं। दमदार डायलॉग्स जैसे "तेरे लिए मेरा प्यार तेरा भी मोहताज नहीं..." दर्शकों की तालियाँ बटोरते हैं।

हालाँकि, निर्देशन और स्क्रीनप्ले में वह पकड़ नहीं दिखती जो एक थ्रिलर को सही दिशा दे सके।

मुख्य समस्याएँ और खूबियाँ

खूबियाँ कमियाँ
हर्षवर्धन का शानदार अभिनय कमजोर और अविश्वसनीय कहानी
उम्दा संगीत और गाने तार्किक असंगतियाँ
कुछ शानदार डायलॉग्स चरित्र विकास का अभाव
रोमांस के शुरुआती दृश्य राजनीतिक प्लॉट का अचानक गायब होना

क्या यह फिल्म देखनी चाहिए?

अगर आप हर्षवर्धन राणे के फैन हैं और उनके अभिनय का लुत्फ़ उठाना चाहते हैं, तो एक बार देख सकते हैं। लेकिन अगर आप एक तार्किक और संतुलित कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो आपको निराशा हो सकती है।

मुख्य बातें:

  • हर्षवर्धन का अभिनय फिल्म की सबसे बड़ी ताकत
  • संगीत मनमोहक और यादगार
  • कहानी में बहुत सारे प्लॉट होल्स
  • आधुनिक दर्शकों के लिए कम अपील

निष्कर्ष

एक दीवाने की दीवानियत उस beautiful disappointment की तरह है जो दिखने में तो attractive लगती है, लेकिन जब आप उसे closer से देखते हैं, तो उसकी कमियाँ साफ़ दिखने लगती हैं। हर्षवर्धन की acting में वह spark है जो फिल्म को watchable बनाती है, लेकिन weak script इस spark को पूरी तरह से ignite नहीं होने देती। क्या आपने यह फिल्म देखी है? अपने विचार कमेंट सेक्शन में जरूर शेयर करें!

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Sumit Mishra

By Sumit Mishra

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