शिक्षक दिवस 2025: आसान हिंदी भाषण, अपने गुरुजनों को दें यह विशेष सम्मान

प्रिय मित्रों, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे जीवन की सबसे बड़ी निर्माता शक्ति कौन है? वह जो हमें अक्षर ज्ञान से लेकर जीवन ज्ञान तक सिखाता है? जी हाँ, हमारे शिक्षक।

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आज, शिक्षक दिवस के इस पावन अवसर पर, हम सब एकत्रित हुए हैं उन्हें वह सम्मान देने के लिए जिसके वह वास्तव में हकदार हैं।

गुरु का महत्व: भगवान से भी बढ़कर

हमारी प्राचीन संस्कृति में गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। एक प्रसिद्ध श्लोक कहता है:

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इसका अर्थ है - गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, और गुरु ही महेश्वर हैं। गुरु साक्षात परब्रह्म हैं, उस गुरु को मैं नमन करता हूँ। यह केवल एक श्लोक नहीं, बल्कि हमारे समाज में शिक्षकों के योगदान को दर्शाने वाला एक दर्पण है।

क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस? डॉ. राधाकृष्णन की विरासत

हर साल 5 सितंबर को हम शिक्षक दिवस मनाते हैं, और इसके पीछे है एक महान शिक्षक की कहानी - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की।

डॉ. राधाकृष्णन न केवल भारत के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे, बल्कि एक प्रख्यात शिक्षाविद्, दार्शनिक और लेखक भी थे। एक रोचक तथ्य: उन्हें 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था! 1954 में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

सबसे खास बात यह है कि जब उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाना चाहा, तो उन्होंने कहा, "मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाय, अगर इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए, तो मुझे बहुत गर्व होगा।" और तभी से यह दिन हमारे लिए एक उत्सव बन गया।

एक शिक्षक की भूमिका: सिर्फ पाठ्यपुस्तकों से कहीं आगे

एक शिक्षक सिर्फ विषय नहीं पढ़ाता; वह जीवन पढ़ाता है। वे अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का दीप जलाते हैं। वे न सिर्फ हमें पढ़ना-लिखना सिखाते हैं, बल्कि सही और गलत का फर्क भी बताते हैं। वे हमारे सपनों के आर्किटेक्ट हैं, जो हमारे भविष्य की नींव मजबूत करते हैं।

अपने शिक्षकों को कैसे दें सच्चा सम्मान?

सम्मान सिर्फ एक दिन का भाषण या गिफ्ट देने से नहीं, बल्कि उनकी सीख को अपने जीवन में उतारने से मिलता है।

  • सुनें और सीखें: उनकी बातों को ध्यान से सुनें और उन पर अमल करें।
  • कड़ी मेहनत करें: अपनी पढ़ाई में ईमानदारी से जुटे रहना ही उन्हें दिया जा सकने वाला सबसे बड़ा तोहफा है।
  • अच्छा इंसान बनें: ज्ञान से भी ज्यादा जरूरी है चरित्र। एक जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनकर आप उनके प्रयासों को सार्थक करते हैं।

निष्कर्ष: आइए हम सब एक वादा करें

आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सभी शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों। आज के इस विशेष दिन पर, मैं आप सभी से एक वादा करना चाहूंगा। आइए, हम सब यह संकल्प लें कि हम अपने गुरुओं के बताए मार्ग पर चलेंगे, उनके ज्ञान को आगे बढ़ाएँगे और इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में अपना योगदान देंगे।

आखिर में, मैं अपने सभी गुरुजनों के चरणों में सादर नमन करता हूँ और उनके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए हृदय से धन्यवाद कहता हूँ। धन्यवाद।

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Sumit Mishra

By Sumit Mishra

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