सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की पौराणिक कथा एवम इतिहास - Somnath Jyotirlinga Mandir

शिवपुराण में महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि महादेव ज्योति पुंज के रूप में अलग अलग 12 जगहों पर आज भी विद्यमान हैं।

history of somnath jyotirlinga mandir

सबसे पहले और पुराने आत्मलिंग सोमनाथ हैं। इस मन्दिर का उल्लेख पौराणिक काल से लेकर इतिहास में विस्तृत ढंग से उल्लिखित है। सोमनाथ मंदिर वर्तमान में कहां स्थित है क्या है इसकी पौराणिक कथा और क्या है आधुनिक इतिहास इन सबके बारे में आगे पढ़ेंगे।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर की पौराणिक कहानी

शिवपुराण की "कोटिरूद्र संहिता" में दिए विवरण के अनुसार पृथ्वी का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ है इसके पीछे की कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव यानी चंद्रमा के साथ किया था चंद्रमा को पाकर राजा दक्ष की सभी पुत्रियां अत्यंत खुश थीं और चंद्रदेव भी उन्हें पाकर निरंतर सुशोभित हो रहे थे।

मन्दिर का नामसोमनाथ ज्योर्तिलिंग मन्दिर
अवस्थितगुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में गिर सोमनाथ जिला
विराजमानभगवान शिव का ज्योतिर्लिंग
ज्योतिर्लिंग का स्थानप्रथम ज्योतिर्लिंग
स्थापनाचन्द्रमा (सोम) देव द्वारा
वर्तमान में जीर्णोद्धारसरदार पटेल द्वारा 1950 में।
शाशी निकायश्री सोमनाथ ट्रस्ट

समय बीतता गया और चंद्रमा सबसे ज्यादा राजा दक्ष की एक पुत्री रोहिणी को प्रेम करने लगे और बाकियों की तरफ उनका मोह न के बराबर था यह बात बाकी 26 पत्नियों को खटकती थी और वह अपनी फरियाद लेकर अपने पिता राजा दक्ष के पास पहुंची और आपबीती सुनाई। यह सुनकर राजा दक्ष अत्यंत चिंतित हो उठे।

राजा दक्ष चंद्रमा से शांतिपूर्वक आग्रह करते हैं कि आप तो निर्मल कुल में पैदा हुए हैं यह भेदभाव आपको शोभा नहीं देता है और मैं उम्मीद करता हूं कि इस तरह का बर्ताव अब आप नहीं करेंगे ऐसा कहकर प्रजापति  वहां से प्रस्थान कर जाते हैं उन्हें अंदर ही अंदर इस बात का भरोसा हो गया था चंद्रदेव उनकी बात का जरूर सम्मान करेंगे लेकिन वो कहते हैं न "विनाश काले विपरीत बुद्धि" चंद्रमा रोहिणी के प्रेम में इतने आसक्त हो गए कि उन्हें बाकी पत्नियों का प्रेम दिखाई ही नहीं दे रहा था लगातार निरादर होने के बाद सभी अर्धांगियां अपने पिता के पास जाकर सारी व्यथा बहुत ही रूंधे शब्दों से सुना डालती हैं पुत्रियों की बात सुनकर एक पिता का दिल दुखी होने के साथ साथ क्रोधित हो उठा और उन्होंने सोमदेव को श्राप दिया कि तुम्हें क्षय रोग(वर्तमान में टीबी) से ग्रसित हो जाओ और अगले पल श्राप का असर दिखने लगा।

चंद्रमा के क्षय रोग से ग्रसित होने के बाद तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि का शोर मच जाता है इंदु की आभा जैसे जैसे क्षीण हो रही थी उसका असर प्रकृति पर पड़ रहा था तब देवर्षि नारद और अन्य देवता गण इंद्र सहित परमपिता परमात्मा ब्रह्मा के पास गए और उनसे अपनी चिंता का कारण बताया तभी ब्रह्मदेव ने इस निवारण के लिए एक सुझाव दिया कि श्राप तो नहीं टाला जा सकता किंतु  इसका उपाय है कि चंद्रमा प्रभास नामक क्षेत्र में जाकर भगवान शंकर के "महामृत्युंजय मंत्र" का जाप करें और विधिपूर्वक पूजन कर महादेव की आराधना करें मुझे विश्वास है कि भगवान शिव उन्हें जरूर श्राप मुक्त कर देंगे।

देवताओं और ऋषियों के कहने पर महाराज चंद्र ने उक्त स्थान पर गए और लगातार 6 माह की तपस्या के बाद फिर एक दिन भक्त वत्सल भगवान शिव प्रकट हुए और बोले कि वत्स! क्या वरदान चाहते हो? तब चंद्र देव ने प्रणाम करते हुए कहा कि यदि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न है तो महादेव मुझे इस रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे द्वारा जो भी अपराध हुए हैं उन्हें क्षमा कीजिए तब भोलेनाथ ने 'शशि' को वरदान दिया कि एक पहर में तुम्हारी आभा क्षीण होगी किंतु दूसरे पहर यानी कि रात के समय तुम्हारी कला फिर से बढ़ती जाएगी और सागर में स्नान करने को कहा, चंद्रमा के सागर में स्नान करने की ही वजह से ही उसमें ज्वार और भांटा का उद्गम हुआ।

स्नान के पश्चात चंद्र क्षय मुक्त हो गए और उन्होंने भोलेनाथ की स्तुति की और महादेव अपने निराकाररूप से साकार रूप शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए वहीं शिवलिंग सोमेश्वर कहलाए। पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि सोमनाथ मंदिर में इन्ही शिवलिंग की स्थापना कर स्वर्ण का मंदिर निर्माण चंद्रदेव द्वारा किया गया था। चंद्रमा का एक और नाम सोम भी है तभी यह मंदिर सोमनाथ के नाम से जाना गया। जो कोई भी इनके दर्शन और पूजन भक्ति भाव से करेगा वह सभी बीमारियों और रोगों से मुक्त होगा। 

सोमनाथ मन्दिर कहां स्थित है और कैसे पहुंचते हैं

यह मंदिर वर्तमान में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के गिर सोमनाथ जिले के बेरावल बंदरगाह के निकट अघोई गांव में स्थित है। यह क्षेत्र तीन नदियों हिरण, सरस्वती और कपिला का त्रिवेणी संगम है। इस प्राचीन मंदिर को "निष्कलंक महादेव मन्दिर" कहा जाता है। यहां से अरब सागर की दूरी मात्र 3 किलोमीटर की है।

यहां पहुंचने के लिए किसी भी बड़े शहर जैसे इन्दौर, उज्जैन, पुणे या नागपुर जैसी जगहों से सीधे सोमनाथ के लिए बसें मिल जाती हैं। ट्रेन द्वारा जाने के लिए सबसे पास का स्टेशन का नाम सोमनाथ ही है आज हर जगह से यहां के लिए डायरेक्ट तथा लिंक्ड रेलगाड़ी मिल जाएंगी। यहां से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर द्वारका स्थित है वहां के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं।

सोमनाथ मन्दिर का आधुनिक इतिहास और आक्रमण

वर्तमान में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार भारत के प्रथम गृहमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेलजी द्वारा 8 may 1950 इसकी नीव रखी गई चूंकि उनका देहांत बीच में ही हो जाने के बाद 1951 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के तत्वाधान में कार्य संपन्न किया गया।

somnath mandir 1869 photo

इतिहास में आक्रमणकारियों के आतंक से बहुत बार इस मंदिर को क्षति पहुंचाई गई कभी खूंखार तुर्कों द्वारा लूटा गया तो कभी मुस्लिम शासकों द्वारा तोड़ा गया। फारसी लेखक अलबरूनी अपनी किताब में लिखता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर प्राचीन नदी सरस्वती के किनारे स्थित है इसकी दीवारों में रत्न अपनी आभा बिखेर रहे हैं इसके ऊपरी शिखर में हीरे जवाहरात सुसज्जित हो रहे हैं। मोहम्मद गजनी अलबरूनी का समकालीन था और इसी किताब से प्रभावित होकर उसने भारत भूमि पर आक्रमण और लूटने की योजना बनाई सन 1000 से लेकर 1024 के मध्य भारत के 17 बार आक्रमण किया।

  • सन 1025 में मुस्लिम अक्रांता मुहम्मद गजनी आक्रमण कर लूट खसोट करता है यहां की रक्षा के लिए तैनात क्षेत्रीय निवासी अपनी जान की बाजी लगाकर प्राण तक न्यौछावर कर चुके हैं। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार मालवा और गुजरात के राजाओं द्वारा करवाया गया।
  • सन 1297 में पूरे देश में दिल्ली सल्तनत का कब्जा रहा तब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आदेश पर सेना के कमांडर नुसरत खान ने सोमनाथ मन्दिर के खजाने को लूटकर मन्दिर को क्षतिग्रस्त कर दिया।
  • आठवीं शताब्दी में सिंध प्रदेश का अरबी कमांडर जुनैद ने इस पर आक्रमण कर नुकसान पहुंचा तब प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका जीवन आधार करवाया।
  • 1395 ईस्वी में जब मुजफ्फर शाह गुजरात का सुल्तान बना तब फिर से सोमनाथ पर आक्रमण हुआ और मंदिर में रखी धनसंपदा लूट कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया, कुछ समय पश्चात हिंदू राजाओं ने फिर से पुनरुद्धार करवा कर वापस से इसे वैभवशाली बनाया।
  • मुजफ्फर शाह के बाद गुजरात का सुल्तान उसका बेटा अहमद शाह बना। अपने पिता के ही भांति वह भी क्रूर था सन 1412 ई में उसने मंदिर पर आक्रमण कर क्षतिग्रस्त किया और लूटपाट मचाई। एक बार फिर हिंदू राजाओं ने मिलकर फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
  • 1665 में क्रूर शासक औरंगजेब के समय सोमनाथ के मंदिर में दो बार आक्रमण हुआ और लूटपाट कर हजारों की संख्या में कत्ल-ए-आम किया गया इन सब हमलों के बावजूद हजारों वर्षों से सोमनाथ चट्टान की तरह अडिग खड़ा रहा कभी भी लोगों की आस्था और भक्ति कम नहीं हुई हर साल लाखों करोड़ों भक्त दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सोमनाथ मन्दिर के रोचक रहस्य

कहते हैं कि जब से पृथ्वी अस्तित्व में है तब से भगवान शंकर ज्योति पुंज के रूप में इस मंदिर में विराजित हैं इसके पौराणिक इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक कई सारी ऐसी बातें हैं जो आश्चर्य से भर देती हैं।

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  • वर्तमान मंदिर के निर्माण की शैली महामेरू प्रसाद है मंदिर के ऊपरी हिस्से में स्थित कलश का वजन लगभग 10 टन बताया जाता है और शिखर की हाइट 150 फीट के आसपास है।
  • मंदिर पर लगभग अब तक 17 बार से अधिक आक्रमण हो चुका है लेकिन अलग-अलग हिन्दू राजाओं द्वारा इसके जीर्ण उद्धार में भूमिका निभाई गई है और हर बार इसका निर्माण कार्य किया गया है।
  • सोमनाथ का उल्लेख स्कंद पुराण, ऋग्वेद और भागवत कथाओं के अलावा प्राचीन ग्रंथों और कथाओं में कई बार मिलता है।
  • मंदिर परिसर के दक्षिण में अरब सागर स्थित है और कहते हैं कि इस दिशा की सीधी रेखा में उत्तरी अंटार्कटिका तक कोई भी भूमि नहीं है और यह बात टेंपल से मिले 6वीं शताब्दी के बाण स्तंभ में संस्कृत भाषा के श्लोक के रूप में हजारों साल से अंकित है मतलब जब यह श्लोक लिखा गया होगा तब मानचित्र का निर्माण भी नही हुआ होगा। बाण स्तम्भ में लिखा श्लोक- आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योर्तिमार्ग
  • भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग सोमनाथ के पास ही किया था।
  • यह शिव का इकलौता ज्योतिपुंज है जो हवा में स्थिर है अर्थात बिना किसी सपोर्ट के लटका हुआ है वैज्ञानिकों का तर्क है कि ऐसा चुंबकीय प्रभाव की वजह से है।

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समापन

इस लेख में सोमनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी और आधुनिक समय में मंदिर के बारे में सारी जानकारी स्पष्ट रूप से देने की कोशिश की है और लिखने में बेहद सावधानी बरती गई है यदि फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि मिलती है तो लेखक या संस्थान जिम्मेदार नहीं होगा इसे मानवीय त्रुटि समझकर कमेंट के माध्यम से हमें सूचित कर सकते हैं हम अवश्य सुधार करेंगे।

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Amit Mishra

By Amit Mishra

नमस्कार! यह हमारी टीम के खास मेंबर हैं इनके बारे में बात की जाए तो सोशल स्टडीज में मास्टर्स के साथ ही बिजनेस में भी मास्टर्स हैं सालों कई कोचिंग संस्थानों और अखबारी कार्यालयों से नाता रहा है। लेखक को ऐतिहासिक और राजनीतिक समझ के साथ अध्यात्म,दर्शन की गहरी समझ है इनके लेखों से जुड़कर पाठकों की रुचियां जागृत होंगी साथ ही हम वादा करते हैं कि लेखों के माध्यम से अद्वितीय अनुभव होगा।

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