क्रांतिकारी भगत सिंह की जीवन यात्रा एवं निबंध - Shaheed Bhagat Singh Essay, History, Revolutionary Facts and Biography

Shaheed-e-Azam Bhagat Singh इनका नाम सुनते ही सबसे पहले जेहन में क्या आता है? एक हैट लगाए ताव वाली मूछों के साथ अंग्रेजी भेषभूसा वाला इंसान? फिर फाँसी के फंदे पर भगत सिंह के साथ झूलते 2 क्रांतिकारी?असल मे कुछ लोगों का सोचना है कि भगत सिंह एक आवेगी और वीर रस की कविताओं के माफिक उग्र रूप व्यक्तित्त्व वाले व्यक्ति थे लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नही है उनको जानने के लिए

वैसे किसी को सम्पूर्ण जानने में और उसके बारे में जानकारी में बहुत अंतर होता है,कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व भगत सिंह का है जिनके बारे में सम्पूर्ण जानना सरल नही है क्योंकि उनके बारे में काफी जानकारियां एक साथ नही मिलती है फिर भी हम बात करेंगे उनके व्यक्तित्व और कृतित्त्व विशेष के बारे मे.

शहीद भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन - Bhagat Singh Early Life, Full Biography

लगभग 23 साल 5 महीने 26 दिन जिंदगी जीने वाले Bhagat Singh का जन्म 28 September 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था अब उनका जन्मस्थल पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले में है.

पारिवारिक बैकग्राउंड की बात करें तो इनका परिवार शिख धर्म से ताल्लुक रखता है और पिता किसान और माता गृहणी थी।

सरदार भगत सिंह के पिता सरदार Kishan Singh समृद्ध किसान तो थे ही लेकिन उनके अंदर एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व भी था,कहते हैं कि जब भगत सिंह का जन्म हुआ तब उनके पिता उस समय जेल में थे और उन्हें भगत सिंह के जन्म के समय ही रिहा किया गया था।

उनकी माता का नाम Vidyavati Kaur था जो कि एक कुशल गृहिणी थीं. भगत सिंह का पारिवारिक माहौल ऐसा था कि अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ या विद्रोह की चर्चा चलती रहती थी जिससे उनके क्रांतिकारी स्वभाव की शुरुआत में बचपन से ही बल मिला।

Nameभगत सिंह
NationalityIndian
ReligionHindu
Date of Birth27 September, 1907
Birth placeग्राम बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (Now in Pakistan)
Father's Nameकिशन सिंह सन्धू
Mother's Nameविद्यावती कौर
Death23 March, 1931

बचपन में 'बंदूक की फसल उगाने'' का किस्सा

महज 12 साल की उम्र में एक किस्सा हुआ जिससे आप उनके क्रांतिकारी स्वभाव की कल्पना कर सकते हैं जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उस उम्र में वह अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने की सोच रहे थे, हुआ कुछ ऐसा कि उनके घर पर एक बंदूक रखी हुई थी जिसको उठाकर वह बगीचे पर काम कर रहे अपने चाचा Ajith Singh के पास जाते हैं (भगत के चाचा अजित सिंह पॉलिटिक्स में काफी एक्टिव थे उन्होंने अंग्रेजी शाशन की नीतियों का कई मौकों पर विरोध भी किया)और उनसे पूछते हैं-

भगत: यह क्या है चाचा?

चाचा: यह बंदूक है बेटा!

भगत: इससे क्या होता है?

चाचा: इसके द्वारा हम अंग्रेजी हुकूमत से लड़ेंगे!

यह बात उस दिन समाप्त हो गयी किन्तु कुछ दिनों पश्चात भगत अपने चाचा के साथ खेतों में गए जहाँ पर चाचा आम के बृक्ष रोपित कर रहे थे तब भगत ने चाचा से पूछा कि यह क्या कर रहें हैं?

चाचा: आम के वृक्ष लगा रहे हैं! यह जब बड़े होंगे तो ढेर सारे फल लगेंगे और पूरा परिवार मिलकर खाएंगे।

भगत सिंह यह सुनकर बड़ी जोर से अपनी घर तरफ भागे और वहाँ से बंदूक लेकर बगीचे पहुँचे और गड्ढा खोदने लगे,उनके चाचा यह सब वाक्या देख रहे थे जब भगत सिंह बंदूक गड्ढे में डालने ही वाले थे कि चाचा ने पूछा यह क्या कर रहे हो तो भगत ने जवाब दिया-

"बंदूकों की खेती कर रहा हूँ" बंदूकों की फसल से ढेरों बंदूकें पैदा होंगी और हम अंग्रेजों की हुकूमत से देश को स्वतंत्र करा पाएँगे।

भगत सिंह की बचपन में सोची गयी सोच और उनका बलिदान आगे चलकर देश की आजादी में अहम हिस्सेदार बना।

Bhagat Singh's Education and College

सरदार भगत सिंह पढ़ने लिखने के बेहद शौक़ीन थे मात्र साढ़े 23 साल की उम्र में उन्होंने क्रांति भी कर ली,इतना साहित्य लिख कर गए कि एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति का लिख पाना संभव नही है बेहद कम उम्र में दुनिया के तमाम दिग्गजों की किताबें कहानियां पढ़ कर गए और समय दर समय सीखी गई बातों को अपनी जिंदगी में आत्मसात किया।

ग्राम बंगा से अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त कर आगे की पढ़ाई के लिए लाहौर के D.A.V कॉलेज में दाखिला लिया,इसके बाद यह लाहौर के ही National college में Arts विषय मे दाखिला लिया, जहाँ इनकी मुलाकात Sukhdev थापर से होती है। इसी कॉलेज से अंग्रेजों का जोरदार विरोध आउट लाला लाजपतराय जैसे दिग्गज नेताओं से संपर्क बढ़ा।

"भगत सिंह क्रांतिकारी"

भगत सिंह जब 12 वर्ष के थे उसी समय 1919 का जलियांवाला बाग हत्यकांड हुआ था इस खबर को सुनकर भगत सिंह 12 मील पैदल जलियावाला पहुचे थे,उसी समय महात्मा गाँधी ने अपना 'असहयोग आंदोलन' वापस लिया था जिसकी वजह से उस छोटी उम्र में भगत सिंह को काफी सदमा लगा था,वह महात्मा गांधी का सम्मान ताउम्र करते रहें लेकिन वैचारिक रूप से बिल्कुल समान नही थे,उन्होंने गंधीजी की तरह हिंसा को अनुचित नही माना और अपनी क्रांति का रास्ता खुद चुना।

भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कालेज में पढ़ रहे थे तभी उन्होंने पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए "नौजवान भारत सभा" की नींव डाली।

वर्ष 1922 में 'चौरी चौरा हत्याकांड' के बाद भगत सिंह एक बार फिर महात्मा गांधी से निराश हुए.महात्मा गांधी ने अपने अहिंसात्मक विचार की वजह से किसानों से खुद को अलग कर लिया था लेकिन भगत सिंह का मानना था कि उन्हें साथ देना चाहिए था इस घटना के बाद से ही भगत का अहिंसा से बचा कुचा भरोसा भी टूट गया.इसके बाद उन्होंने शसक्त क्रांति के रास्ते पर अग्रसर रहे।

1923 के दौरान चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली गदर पार्टी में भहगत सिंह शामिल हो गए,यह वही गदर पार्टी थी जिसने भगत सिंह को गुरु दिया अर्थात गदर पार्टी के "करतार सिंह सराबा" को वह अपना वैचारिक गुरु मानते थे।

काकोरी काण्ड के बाद भगत सिंह

'चंद्रशेखर आजाद' की नेतृत्व वाली 'Hindustan Republican Association' के 10 सदस्यों ने लखनऊ के पास काकोरी नाम की जगह से अंग्रेजों की ट्रेन से खजाना लूटने की घटना को 1925 में अंजाम दिया जिसे 'काकोरी काण्ड' कहा गया।

इस घटना के बाद ब्रिटिश प्रशासन उत्तेजित हो उठा और Ram Prasad Bismil, Ashfaq ullah Khan, RajendraNath Lahini और ठाकुर Roshan Singh क्रांतिकारियों को फांसी और 16 अन्य लोगों को 4 से लेकर कालापानी की सजा सुनाई गयी.

इस घटना के बाद भगत सिंह अंदर से इतने आवेगित हुए कि उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन के एक्टिव सदस्य बन गए,इस असोसिएशन का उद्देश्य त्याग,पीड़ा और देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी तैयार करना था।

इस संगठन के लिए लाहौर में भगत सिंह द्वारा भाषण उस समय खूब चर्चा का विषय रहा और इसी भाषण के बाद चंद्रशेखर आजाद ने पूरी असोसिएशन का नेतृत्व भगत सिंह को सौंप दिया।

लाहौर भाषण के बाद ही भगत सिंह ने असोसिएशन का नाम बदलकर "Hindustan Socialist Republican Association" रख दिया।

"1928 में लाला लाजपतराय की हत्या"

1928 में 'साइमन कमीशन' भारत आ रहा था जिसके विरोध में अनेक सभाएं हो रहीं थी और साइमन के बहिष्कार की मांग चल रही थी जिसके विरोध में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा लाठी चार्ज की गयी और लाला लाजपतराय की लाठियों से पीटकर हत्या कर दी गयी।

लाला लाजपतराय की मृत्यु से भगत सिंह,राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी अत्यन्त क्रोधित और हताहत हुए, लाला लाजपतराय एसोसिएशन के पुराने सदस्य थे और भगत सिंह उन्हें पिता तुल्य मानते थे।

"अंग्रेजी पोलिस सुपरिडेंट स्काट को मारने की योजना"

लाल लाजपतराय की मृत्यु का बदला अंग्रेजी अफसर स्काट को मारकर बदला लेने की योजना चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह और अन्य साथियों ने बनायी।

योजना के अनुसार भेष बदलकर भगत सिंह और राजगुरु अंग्रेजी कोतवाली के सामने टहलने लग गए और साथी जयगोपाल को एक साइकल देकर खराब करके रोड पर ही अंग्रेजी अधिकारी स्काट का इंतज़ार करने को कहा गया, चंद्रशेखर आजाद पास के ही DAV स्कूल के अंदर छिपकर पीछे से संरक्षण देने का काम कर रहे थे।

शाम को करीब 4 बजकर 15 मिनट पर तारीख थी 17 December 1928,लेकिन अंग्रेजी अधिकारियों की सूची में कुछ बदलाव के चलते ऑफिसर स्काट की जगह एसपी साण्डर्स आया और आते ही राजगुरु ने सिर पर गोली मारी और उसके बाद भगत सिंह ने 3 4 गोलियां चलाकर साण्डर्स की हत्या कर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया।

राजगुरु और भगत सिंह जब भाग रहे थे उसी समय अंग्रेजों का सिपाही था चनन सिंह जो कि भारतीय था, चंद्रशेखर आजाद ने चेतावनी दी कि मैं भारतीयों को नही मरता वापस हो जाओ लेकिन सिपाही नही माना परिणाम स्वरूप आजाद को गोली मारनी पड़ी।

अंग्रेजी असेम्बली में बम फेंकने की योजना

भगत सिंह शुरुआत में कम्युनिस्ट विचारधारा को मानते थे कार्ल मार्क्स के विचारों से काफी प्रभावित भी थे किंतु समय के साथ साथ वह समाजवादी 'सोशलिस्ट' विचारधारा को पोसने का काम करने लगे थे।

भगत सिंह अंग्रेजों को यह यकीन दिलवाना चाह रहे थे कि पार्लियामेंट या असेम्बली में अंग्रेजी हुकूमत जो भी बिल पारित करती है उसकी समझ भारतीयों को है और भारतीय जाग चुके हैं और इसके लिए समय समय पर विरोध जारी रहता था।

अंगरेजी शाशन द्वारा असेम्बली में एक बिल लाया गया था जिसमे मजदूरों के प्रति शोषण की भावना जैसी चीजें थी इस बिल का मुखर तरीके से विरोध करने के लिए भगत सिंह और उनके दल ने निर्णय लिया, इसके बाद उन्होंने असेम्बली में बम फेंकने का निर्णय लिया हालांकि वह खून खराबा जैसी चीजों के विरोधी थे बम फेंकने के निर्णय मे केवल अपनी बात अंग्रेजी शाशन तक पहुचाना था उसी समय भगत सिंह ने कहा था कि

 "बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है"

हालांकि शुरुवात में दल के लोगों ने बम फेंकने की जिम्मेदारी भगत सिंह को नही दी जा रही थी उसके पीछे का कारण यह था कि भगत सिंह एसोसिएशन के महत्वपूर्ण अंग या यूं कहें कि रीढ़ की हड्डी थे लेकिन भगत सिंह की जिद्द और समझाने पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया।

8 April 1929 को अंग्रेजी हुकूमत की केंद्रीय असेम्बली में भगत सिंह और अन्य साथयों द्वारा बम फेंक दिया गया, योजना के अनुसार किसी को क्षति पहुंचाना उद्देश्य नही था इसी वजह से उन्होंने असेम्बली में बम एक दम खाली जगह पर फेंका जिससे पूरी असेंबली धुवां धूसरित हो गयी उसके बाद वह भागे नही और भगत ने अन्य साथियों संग अपनी गिरफ्तारी दी और साथ मे रखे पर्चे उछाल दिए और 'इंक़लाब जिन्दाबाद' 'साम्राज्यवाद मुर्दाबाद' के नारे लगाए।

भगत सिंह को जेल

भगत सिंह को जेल भेज दिया गया लगभग 2 साल तक वह जेल में रहे, असेम्बली बम कांड के बाद भगत सिंह को मीडिया में जगह और उनके लिखे गए लेखों को विस्तारित होने का मौका मिला, जेल में रहते हुए अनेक विषयों पर लिखा और अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबवा दिए।

भगत सिंह पूंजीवाद के खिलाफ थे जेल में रहते हुए उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा और अनेकों किताबें पढ़ते रहे और अपने विचारों को नए आयाम तक पहुंचाते रहे। जेल में रहते हुए जेल में रहने वाले कैदियों की मूलभूत अधिकार की बात की और आमरण आंदोलन चलाया। 64 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनके एक साथी 'जतिन दास' शहीद हो गए। जेल में रहते हुए उन्होंने किताब लिखी "मैं नास्तिक क्यों हूँ"।

भगत सिंह को फांसी

अगस्त 1930 को अंग्रेजी अदालत द्वारा उन्हें अपराधी सिद्ध किया गया, 68 पृष्ठ के अंग्रेजी फैसले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनायी गयी।

फाँसी की सजा के बाद अंग्रेजों को इस बात का अंदेशा था कि स्थिति कंट्रोल के बाहर हो सकती है जन आक्रोश बड़ी संख्या में भड़क सकता है इस वजह से लाहौर समेत कई जगहों पर धारा 144 लगा दी गयी और सिपाहियों की तैनाती बढ़ा दी गयी।

भगत सिंह की फाँसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई लेकिन यह अपील 10 January 1931 को खारिज हो गयी इसके बाद के पंडित मदन मोहन मालवीय ने अंग्रेजी वायसराय के सामने 14 फरवरी को सजा की माफी के लिए फिर से अपील दायर की अपील में कहा गया कि वायसराय अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल कर माफी दी जाए, लेकिन पुनः अपील खारिज हो गयी।

महात्मा गांधी ने वायसराय से 17 फरवरी 1931 भगत सिंह की फाँसी से संबंधित बात की और आम जनता की ओर से भिन्न भिन्न अपीलें की लेकिन वायसराय ने सुनने से इनकार कर दिया, हालांकि भगत सिंह खुद इस बात के खिलाफ थे कि उनके लिए कोई अंग्रेजो के सामने झुके और माफी मांगे।

24 मार्च 1931 को भगत और उनके 2 साथियों को फांसी मुकर्रर की गई थी लेकिन अंग्रेजी आदेश द्वारा पुराने आदेश के एक दिन पहले  23 मार्च 1931 को शाम को 7:33 पर भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया।

जब जेलर उनके पास पहुंचते हैं और कहते हैं की आधे घंटे बाद आपको फांसी देने का आदेश है उस समय भगत सिंह "लेनिन" की किताब पढ़ रहे थे उन्होंने जेलर को जवाब में कहा कि थोड़ा समय दीजिए और कहा 

"आखिर एक क्रांतिकारी का दूसरे क्रांतिकारी से मिलन हो रहा है"


कुछ पृष्ठ पढ़ने के बाद किताब को छत की ओर उछाल देते हैं और जेलर से कहते हैं कि चलिए! जेलर भारतीय थे उनकी भी आंखें नम थी जब उन्हें फांसी के स्थल पर लिया जा रहा था तब भगत और दोनो साथी समेत गीत गा रहे थे वह गाना था

"मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे।

माय रंग दे बसंती चोला, माय रंग दे।"

अंतिम समय में भगत की माता विद्यावती कौर जब मिलने आई तो रोने लगीं थी इस पर भगत ने जवाब दिया था कि

"लोग क्या कहेंगे की भगत सिंह की मां रो रही है"

फांसी के बाद सभी क्रांतिकारियों के शरीर के टुकड़े कर अंग्रेजी सरकार ने घी की जगह मिट्टी के तेल में जलाने लगे थे लेकिन लोगों के आ जाने पर अंग्रेजी सैनिकों ने उनके मृत शरीर के टुकड़ों को सतलज नदी में फेंक कर भाग गए हालांकि लोगों के सही समय में पहुंच जाने पर मृत शरीर के कुछ टुकड़ों को उठा लिया गया और उनके परिवार को सौंप दिया गया बाद में परिवार ने अंतिम संस्कार विधि विधान तरीके से किया।

उनके शहीद होने के बाद पूरे भारत में जन आक्रोश उमड़ पड़ा भगत सिंह कद में 23 साल की उम्र से कहीं बड़े हो चुके थे उनके विचार और की हुई क्रांति लोगों में एक नया जोश भर रहा था।

उनके शहीद होने के बाद महात्मा गांधी को जान आक्रोश का सामना करना पड़ा, कई जगह उनपार हमले हुए काले झंडे दिखाए गए।

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अंतिम शब्द

भारत भूमि का भाग्य है जहां भगत, राजगुरु सुखदेव पैदा होते हैं, भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नही बल्कि एक विचार हैं, और विचार कभी मरते नही,विचार सदैव सदैव के लिए अमर हो जाते हैं।

महज 23 साल 5 महीने की उम्र में इतना भरी व्यक्तित्व और कृतित्व भूत भविष्य में परिकल्पना करना आसान नहीं हैं भगत सिंह को सिर्फ सिंबल के तौर पर नही एक विचारक और दार्शनिक रूप में भी जानना चाहिए,धन्य है भारत की माटी कि ऐसे वीर को जन्म दिया,भगत सिंह अमर रहें।

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