आगामी 22 जनवरी 2024 को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी यह उत्साह केवल भारत तक ही सीमित नहीं है जबकि अमेरिका जैसे देशों में विश्व हिंदू परिषद द्वारा "500 Year Hindu Struggle To Rebuild Shree Ram Mandir in Ayodhya" कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

अयोध्या नगरी में आयोजन का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया जाएगा। इस मन्दिर के बनने का संघर्ष 500 सालों से भी ज्यादा का है तो आइए चलते हैं इतिहास की गहराई में।
श्रीराम मन्दिर अयोध्या

इतिहास के आईने में झांका जाए तो भारत में 6वीं शताब्दी से आक्रांताओं ने हमले की शुरूवात कर दी। छठी शताब्दी में खलीफाओं के बाद 7वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन कासिम और बाद में 9वीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने मंदिरों पर हमला शुरू कर दिया। लुटेरों और अक्रणताओं ने भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों से लेकर भारत के लगभग सभी मंदिरों में आक्रमण लूटपाट के साथ साथ ध्वस्त करते रहें हैं ऐसे में अयोध्या का मन्दिर अछूता था इसके पीछे का कारण था संतों, तपस्वियों और क्षेत्रीय लोगों का बलिदान, जब भी इस मन्दिर की ओर किसी ने नजर उठाई इन सबों ने डटकर मुकाबला किया। कहते हैं सिकंदर लोदी के शासन काल यानी कि 15वीं शताब्दी तक यह मन्दिर अछूता रहा है। इस मन्दिर के इतिहास की कुछ ऐसी कहानियां जो इसकी नीव में दफन हैं।
बाबर के सेनापति ने मन्दिर तोड़कर बनाई मस्जिद
बाबरनामा किताब में लिखित है कि 1528 में बिहार प्रवास के दौरान रास्ते में अयोध्या के श्रीराम मन्दिर को तोड़ दिया गया। किताब में लिखा है कि "जन्नत तक जिस बादशाह के न्याय के चर्चे हैं ऐसे बाबर के आदेश पर मिया बाकी ने फरिश्तों की इस जगह को मुकम्मल रूप दिया" इस बात से साफ संकेत मिलते हैं कि मीर बाकी ने मन्दिर तोड़ दिया। बाद के कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के राज्य के समय हिन्दुओं को पूजा करने के लिए उसी स्थान के एक कोने में चबूतरा दिया गया था लेकिन जब क्रूर शासक औरंगजेब आया तब उसे तोड़कर वहा पर मस्जिद का निर्माण किया इसी का नाम "बाबरी" रखा गया।
लाखों सनातनियों ने किए थे प्राण न्योछावर
जब मन्दिर तोड़ा गया तो उस समय के अखबारों में एक नाम आता है देवी नाथ पांडेय का और एक राजा बद्रीनारायण इन दोनों ने लोगों को इकट्ठा कर कई दिनों तक मुगलों से लड़ाई लड़ी लेकिन अंत में लगभग 1 लाख सत्तर हजार लोग मारे गए और मीर बाकी जीत गया। अंग्रेजी हुकूमत के इतिहासकार और पुरातत्त्वविद कनिंघम "लखनऊ गजेटियर" में इस आंकड़े और घटने का जिक्र किया था।
अंग्रेजी हुकूमत के समय भी हुआ था विवाद
1853 में मन्दिर और मस्जिद को लेकर हिंदू और मुस्लिम भिड़ गए और हिंसा हुई। इसको सुलझाने के लिए हिन्दुओं की तरफ से हनुमान गढ़ी के महंत बाबा रामचरण दास और मुसलमान की तरफ से मौलवी आमिर अली ने हिन्दू मुस्लिम एकता को बनाए रखने के लिए फिर से श्रीराम के स्थान होने का पक्ष लिया लेकिन कुछ मुस्लिम कट्टर और अंग्रेजों ने देखा कि यह तो एकता की मिसाल बन जाएंगे तो आपस में फुट डाल कर दोनो को 1858 फांसी के लटका दिया लोग 1935 तक उस पेड़ की पूजा करते थे जहां पर बाबा और मौलवी को फांसी हुई थी अंग्रेजों ने उस पेड़ को 1935 में कटा दिया और 1859 में परिसर में बाड़ लगवा दी जहां पर परिसर के अंदर मुस्लिम जा सकते थे और बाहर चबूतरे में हिन्दू पूजा करते थे।
पहली बार न्यायालय में केस
महन्त श्री रघुवीर दास ने मामले को फैजाबाद की अदालत में रखा और न्यायाधीश के सामने जनवरी 1885 को कहा कि यह स्थान प्रभु श्रीराम का घर है यहीं पर रामलला पैदा हुए थे अतः मंजूरी दीजिए कि यहां राममंदिर बनना चाहिए।
साल 1949 में बाबरी में प्रवेश वर्जित
1949 को मस्जिद के अंदर से भगवान श्रीराम की मूर्तियां पाई गई हिंदुओं ने कहा कि श्रीराम प्रकट हुए हैं जब कि मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह षड्यंत्र है मन्दिर के अंदर मूर्तियां हिन्दू संगठनों ने प्लांट की है। सरकार ने इस विवाद को बढ़ते देख मस्जिद में ताला लगा दिया। मामला अदालत में विचाराधीन रहा लेकिन फिर
- 1950 में श्रीराम की पूजा के लिए एक याचिका डाली गई।
- 1959 में निर्मोही अखाड़ा तीसरा पक्ष बनकर अदालत में अर्जी दाखिल की।
- 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल की और कहा कि मूर्तियां हटाकर उन्हें नमाज पढ़ने दी जाए।
- 1984 में हिंदुओं का संगठन विहिप ने एक आंदोलन चलाया जिसमे कहा गया कि श्रीराम के जन्मस्थान को मुक्त किया जाए और वहां मंदिर बनाने दिया जाए।
- 1986 में जिला न्यायालय की तरफ से आदेश जारी किया गया कि ताला खोलकर पूजा करने दिया जाए उसी समय दूसरे पक्ष ने एक कमेटी का गठन किया जिसका नाम था "बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति"।
1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला

हिन्दू संगठनों के आंदोलनों की गूंज पूरे देश में हलचल मचा रखी थी और ठीक इसी वर्ष हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस विवादित परिसर में सनातनियों को पूजा करने देना चाहिए।
कोठरी बंधुओं का बलिदान और मुलायम सिंह का आदेश
साल 1990 में अक्टूबर के समय अयोध्या जाने पर रोक लगी किंतु हजारों की संख्या में फिर भी कारसेवक पहुंच गए और मस्जिद के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया गया नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने गोली चलाने के आदेश दे दिया और हजारों की संख्या में लोग मारे गए हेलीकॉप्टर से गोलियां चलाई गईं इसी समय कोठरी बंधु भी मारे गए उनका बलिदान अभी भी चर्चाओं में हैं अयोध्या की सरयू नदी का तट लाशों से पटा पड़ा था परिणाम यह हुआ कि 1991 में मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
6 December 1992 का ऐतिहासिक दिवस

इस दिन विश्व हिन्दू परिषद के नेता Ashok Singhal, Advani, Uma Bharti, Murli Manohar Joshi, Sadhvi Ritambhara समेत 13 नेताओं ने अयोध्या चलो हुंकार भरी और परिणाम यह हुआ कि बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया जिसकी वजह से इन नेताओं पर मुकदमे भी चले। उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर भी आरोप लगे कि उन्होंने करसेवकों को रोका नहीं, मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कहा था कि सेवकों पर गोली नहीं चलाई जाएगी।
- इसके बाद साल 2003 में पुरातत्व विभाग (ASI) ने एक रिपोर्ट अदालत में पेश की जिसमे मस्जिद के ढांचे के नीचे राम मन्दिर के अवशेष प्राप्त हैं। मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया।
- 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया कि जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया जाए पहला हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और दूसरा हिस्सा जहां रामलला विराजमान हैं वो मंदिर के लिए और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए।
- 2011 में मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया जहां 2019 तक सुनवाई चलती रही।
- 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को खत्म कर फैसला राम मन्दिर के हित में सुनाया और मुस्लिम पक्ष के लिए अलग से 5 Acre जमीन देने का फैसला सुनाया।
- 2020 में मन्दिर की नीव रखकर प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि पूजन किया और 22 जनवरी 2024 को मन्दिर का उद्घाटन हो रहा है।
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समापन
अयोध्या के श्रीराम मन्दिर की संघर्ष की गाथा शब्दों में नही बयान की जा सकती है हमने बस तथ्यों को लेकर एक संक्षिप्त कोशिश की है। संघर्ष में कहानियों के पीछे न जाने कितना खून और पसीना होता है 500 सालों के संघर्ष और बलिदान का परिणाम श्रीराम मन्दिर हैं श्रीराम इस देश की वैचारीकता हैं तो बोलो जय श्रीराम!