भारत गांव का देश कहा जाता है यहां की सत्तर प्रतिशत आबादी गाँव में निवास करती थी ग्रामीण सभ्यता के अपने कल्चर रहन सहन होते थे अधिकांशतः इस परिवेश के लोगों के पास आय का साधन एक मात्र खेती हुआ करता था गांव और शहर के बीच के परिवहन में मुख्य भूमिका निभाने वाला एकमात्र साधन बैलगाड़ी था जो हमारी बीती हुई संस्कृति के समृद्धता का प्रतीक भी था।
ग्रामीण जीवन अपनी सादगी और प्रकृति से जुड़ाव का पर्याय माना जाता था इसी जीवनशैली में कई शताब्दियों से जीवन का हिस्सा रही है बैलों वाली गाड़ी अर्थात बैलगाड़ी, बैलगाड़ी का इतिहास जितना पुराना है उतना रोचक भी है आगे जानेंगे(बैलगाड़ी पर निबंध)कि कैसे यह दो पहिया वाला वाहन हमारी संस्कृति और पीढ़ियों की धरोहर रहा है।
प्राचीन परिवहन "बैलगाड़ी" का इतिहास
बैलगाड़ी वैदिक काल से लेकर राजाओं महाराजाओं के समय से ही हमारी संस्कृतीय विरासत का हिस्सा रही है पुराने समय में खेती के समान से लेकर अन्य वस्तुओं को एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान की दूरी इसी साधन से तय की जाती थी। भारतीय त्योहारों में इसका अतुलनीय अहम योगदान रहा है मकर संक्रांति से लेकर पोंगल तक बैलों की इस गाड़ी को विधिवत सजाया जाता था पूरा परिवार बैठकर मेला या अपने रिश्तेदारों के यहां मिलने जाता था यह सिर्फ चलने का साधन न होकर हमारी आत्मीयता, भावना और समृद्धता का प्रतीक थीं।
भारत में जब उपनिवेशवाद की शुरुवात हुई अर्थात अंग्रेजों ने कब्ज़ा किया था तब तक व्यापार के लिए रेलवे या अन्य कोई साधन नहीं था उस समय भी बैलगाड़ी ने अहम भूमिका निभाई। इसकी संरचना या आकार की बात करें तो यह दो बैलों द्वारा खींचा जाने वाला वाहन है इसमें 2 बड़े पहिए लगे होते हैं और यह पूरी लकड़ी(काठ)से निर्मित की जाती थी लकड़ी से बने पहियों में लोहे की एक परत चढ़ाई जाती थी, बैलों के गले में घंटियां बांध दी जाती थी जो कि हॉर्न का काम करती थी इंग्लिश में इसे(Bullock Cart)कहा जाता है।
ग्रामीण जनजीवन में बैलगाड़ी का योगदान
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इसकी मुख्य भूमिका रही है क्योंकि गांव की लगभग 90 प्रतिशत आय का स्रोत किसानी कार्यों पर आधारित था ऐसे में फसलों को शहरों में बेचने से लेकर खेत खलिहान से अपने घर तक ले जाने में बैलगाड़ी ने ही मुख्य भूमिका निभाई है पहले के कच्चे और ऊबड़ खाबड़ रास्तों को बहुत आराम से यह साधन पार कर लेता था।
इसकी मुख्य बात यह थी कि इसमें कोई ईंधन नही लगता था और किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता था बस खींचने के लिए मजबूत बैलों का जोड़ा चाहिए होता था जिन्हें किसान बहुत प्यार से रखते थे फसल से निकला हुआ भूसा और सरसो से तेल निकलने के बाद बचा हुआ पदार्थ "खरी" बैलों का मुख्य भोजन हुआ करता था जो उन्हें मजबूती प्रदान करता था। बैलगाड़ी ग्रामीण भारत के लोगों के दैनिक जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग थी।
बैलगाड़ी के साथ जुड़ी परंपराएं और त्योहार
किसी भी महोत्सव हो या कोई कार्यक्रम उस पर बैलगाड़ियों की महत्ता बहुत ज्यादा थी चाहे शहर से समान लाना हो या फसल को बाजार तक ले जाना हो हर जगह यह जीवनशैली का भाग था सांस्कृतिक रूप से बैलगाड़ी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं जैसे कि:-
- मकर संक्रान्ति या पोंगल के त्योहारों में ग्रामीण इस दिन इसे बड़े चाव से सजाते हैं और प्रदर्शित करते हैं कि किसकी गड्डी बेहतरीन दिखती है इसी दिन पूरा गांव एकत्र होकर अपनी अपनी बैलगाड़ियों में परिवार के सदस्यों को लेकर मेला देखने भी जाते थे यह प्रथा सदियों से चलती आ रही है।
- गांवों की मिट्टी में लोक गायन और लोक नृत्य घुले हुए हैं वैशाखी, तीज या अन्य कोई त्योहार होता था तो कहानी या लोक गायन की प्रस्तुति के समय बैलगाड़ी को सामूहिक रूप से केंद्र बिंदु बनाया जाता था जो सयाने लोग अपने बच्चों को इतिहास के संघर्ष की गाथा जैसे बताते थे, बैलगाड़ी को उसमे प्रतीक बताया जाता था।
- त्योहार में सामूहिक कला और कुशलता का प्रदर्शन होता था कई जगह बैलगाड़ियों की रेस होती थी दो गांवों के मध्य भी इस प्रतियोगिता का आयोजन होता था, एक तरह से बैलगाड़ी आपसी सद्भाव की डोर बनने के साथ किसान का उपयोगी अस्त्र बन चुका था।
- जब भी कभी शादी संस्कार होता था तब बारात एक दिनों की न होकर तीन दिनों तक चलती थी और एक गांव से दूसरे गांव तक इसी के माध्यम से बारात का विस्थापन होता था, अगर दूर की बारात होती थी तो दुल्हन पालकी की जगह सजी धजी बैलगाड़ी में जाती थी बैलों के श्रृंगार की अलग व्यवस्था की जाती थी।
बैलगाड़ियों का वर्तमान और भविष्य
हमारा प्यारा देश सदियों से कृषि प्रधान रहा है यहां गाय और पशुपालन को ईश्वरीय दर्जा दिया जाता है मुख्य आय का स्रोत कृषि था और लोग सद्भावना के साथ रहते थे वाहन के नाम पर बैलगाड़ी और बैल हुआ करते थे दूर दराज तक लोग इसी से यात्रा करते थे कई सदियों तक यह आमजन के आवागमन का एकमात्र साधन था।
असली भारत की तस्वीर आज भी लहलहाते हुए खेत और उनके बीच से निकलती हुई बैलगाड़ी में बंधे हुए बैलों की घंटी की आवाज है लेकिन समय के साथ तकनीक विकसित होने की वजह से अब नए साधनों ने जन्म ले लिया है अधिकतर गांव आज शहर बनने की कगार पर हैं ऐसा लगता है जैसे आपस में प्रतिद्वंदता चल रही है बेशक आज के वाहनों की गति और बनावट की तुलना बैलगाड़ी से किसी भी तरह नहीं हो सकती।
बेशक पहले हैप्पीनेस नापने का इंडेक्स नही रहा होगा लेकिन सारा भारत खुशहाल था विज्ञान ने आधुनिकता तो दी लेकिन साथ ही ग्लोबल वार्मिंग भी दी, भविष्य में आने वाली पीढ़ी बैलगाड़ी और उस भारत को सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पढ़ेंगे क्योंकि अब धीरे धीरे दुनिया आधुनिक होती जा रही है और ऐतिहासिक विरासत पीछे छोड़ती जा रही है।
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निष्कर्ष:
बैलगाड़ी हमे याद दिलाती है कि हमारे इतिहास की जड़ें कितनी समृद्धि थी और जीवन शैली कितनी विकसित थी और प्राकृतिक रूप से हम प्रकृति के कितने करीब थे, यह केवल उपयोगिता का साधन न होकर अपितु त्योहारों और रीति रिवाजों में जोड़ने का भी काम करती थी, समय कितना बदल जाए लेकिन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरें कभी नहीं बदलती जब समय और बीतेगा तो यही अतीत के पन्नों में जाकर भविष्य के ऐसे होने की कल्पना की जाएगी।