ब्रिटिश-युग के पुल और उनकी गारंटी: क्या सच में आज भी PWD को ब्रिटेन से आती हैं चिट्ठियां?

भारत में अंग्रेजी शासन लगभग 200 सालों तक शासन किया और इस दौरान उन्होंने इंजीनियरिंग और तकनीकी में अद्वितीय विकास किया। रेलवे, पुल बांध और सड़क जैसी व्यवस्थाओं का लोहा आज भी माना जाता है।

ब्रिटिश-युग के पुल और उनकी गारंटी: क्या सच में आज भी PWD को ब्रिटेन से आती हैं चिट्ठियां?

एक शतक से पहले के निर्माण किए गए पुल आज भी जस का तस खड़े हैं। सोशल मीडिया पर अक्सर यह दावा किया जाता है कि 100 सालों से टिके हुए इन ब्रिजों की जिम्मेदारी आज भी ब्रिटेन सरकार निभा रही है और समय समय पर PWD (Public Works Development) विभाग को चिट्ठियां लिखकर पुलों की एक्सपायरी डेट की जानकारी देता है आइए जानते हैं कि इस वायरल दावे में कितनी सच्चाई है।

अंग्रेजी सरकार द्वारा निर्माण किए गए कुछ पुल

फिरंगियों का मुख्य उद्देश्य भारत में राज कर समस्त एशिया को कब्जे में लेना था और भारत उस दौर में उनके लिए एक बड़ा बाजार था जो उनके इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के लिए कच्चे माल का स्रोत था यही कारण था कि यहां पर व्यापारिक मार्गों के लिए आवागमन सुदृढ़ करना उनका मुख्य उद्देश्य था बहरहाल देखते हैं कि उनके शासन काल में कौन कौन से महत्वपूर्ण सेतु का निर्माण किया।

  • कलकत्ता का हावड़ा ब्रिज 1943 में हुगली नदी पर बना था जो आज भी रनिंग पोजीशन में है।
  • तमिलनाडु का पांबन ब्रिज (1914) जो रामेश्वरम को भू भाग से जोड़ता है।
  • मुंबई गोवा हाइवे पर स्थित सावित्री ब्रिज का निर्माण 1914 में अंग्रेजी शासन द्वारा कराया गया था।
  • हुगली नदी पर स्थित जुबली पुल(1887) ब्रिटिश द्वारा बनाया गया बेहतरीन सेतु है।
  • बनारस में बना 1887 में लैंसडाउन ब्रिज रेल और यातायात के लिए आज भी उपयोग में आता है।

यमुना ब्रिज दिल्ली और गंगा पुल पटना यातायात के लिए आज भी प्रसिद्ध हैं। इनमें से अधिकतर पुल रेलवे के निर्माण 1850ई. के बाद बनाए गए हैं जिससे व्यापार हो सके, ज्यादातर अभी तक उपयोग में लाए जाते हैं।

क्या सच में ब्रिटेन से आती हैं गारंटी की चिट्ठियां?

ये बात सच है कि आज भी ब्रिटिश ऑफिशियल द्वारा भारत के पी डब्ल्यू डी व NHAI विभाग को चिट्ठियां भेजी जाती है लेकिन यह कोई जवाबदेही या अपना हक जताने के लिए नहीं बल्कि हिस्टोरिकल रिकॉर्ड के तौर पर।

उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में स्थित सावित्री ब्रिज के लिए तार प्राप्त हुआ था कि इस ब्रिज की अवधि 80 से 100 सालों के बीच थी और यह अवधि समाप्त हो चुकी है। 14 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और फाइनेंस मिनिस्टर अजीत पवार ने सावित्री पुल के लिए इंग्लैंड से आई चिट्ठी का जिक्र करने के साथ यह भी कहा कि समय समय पर ऐसे तार प्राप्त होते रहते हैं।

कोलोनियल इंजीनियरिंग का अंतिम संदेश

ब्रिटिश कोलोनियल की तकनीकी आज भी भारत की विरासत में है फायदा यह हुआ कि आजादी के बाद आधुनिकता की नींव रखने में यह पक्ष सहायक है लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि इनका ज्यादातर लाभ अंग्रेजी सरकार को हुआ न कि भारत के विकास में।

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इतने साल बाद भी ब्रिटेन इन पुलों, रेलवे और इंफ्रा के रिकॉर्ड रखे हुए है यह उनकी कंपनी की जवाबदेही सिद्ध करता है। आज भी रेलवे लाइन, सेतु उसी तरह मजबूती से खड़े हैं यह दर्शाता है कि उनकी तकनीक कितनी आधुनिक है। वैसे आप क्या सोचते हैं कमेंट करके बताएं।

Support Us

भारतवर्ष की परंपरा रही है कि कोई सामाजिक संस्थान रहा हो या गुरुकुल, हमेशा समाज ने प्रोत्साहित किया है, अगर आपको भी हमारा योगदान जानकारी के प्रति यथार्थ लग रहा हो तो छोटी सी राशि देकर प्रोत्साहन के रूप में योगदान दे सकते हैं।

Amit Mishra

By Amit Mishra

नमस्कार! यह हमारी टीम के खास मेंबर हैं इनके बारे में बात की जाए तो सोशल स्टडीज में मास्टर्स के साथ ही बिजनेस में भी मास्टर्स हैं सालों कई कोचिंग संस्थानों और अखबारी कार्यालयों से नाता रहा है। लेखक को ऐतिहासिक और राजनीतिक समझ के साथ अध्यात्म,दर्शन की गहरी समझ है इनके लेखों से जुड़कर पाठकों की रुचियां जागृत होंगी साथ ही हम वादा करते हैं कि लेखों के माध्यम से अद्वितीय अनुभव होगा।

Related Posts

Post a Comment