भारतभूमि हजारों साल से सिद्ध सन्तों की भूमि रही है हमारी धार्मिक संस्कृति में सत्संग और संत वाणी समाज की मार्गदर्शिका मानी जाती थी। सनातन धर्म के बीते तीनों युगों में अध्यात्म ज्ञान चक्षु साधुओं संन्यासियों के ज्ञान से खुलना सम्भव हो पाया है।

आज भी हमे सामाजिक और आध्यात्मिक राह दिखाने वाली धार्मिक महान विभूतियां मौजूद हैं ऐसे ही अपनी पवित्र वाणी से समाज को सही दिशा दिखाने वाले Premanand Govind Sharan Ji Maharaj का जीवन वृतांत और श्री हित प्रेमानन्दजी महाराज वृंदावन के जीवन के प्रमुख बिंदुओं को साझा करेंगे।
"राधावल्लभ" सन्त श्री प्रेमानन्द महाराज

वर्तमान में विरले ही कोई इंसान हो जो Premanand Baba Vrindavan को न जानता हो। महाराज जी 'श्रीजी' अथवा "राधा रानी" के अनन्य भक्त हैं और वर्तमान में देवी राधा की नगरी वृन्दावन में भक्ति में तल्लीन हैं इनका व्यक्तित्व ऐसा है कि एक बार जो इनकी वाणी से अमृत वचन सुन ले वह मंत्रमुग्ध हो जाए। महाराज जी का जीवन बहुत ही सादगी और भक्तिपूर्ण रहा।
सन्त श्री प्रेमानंद महाराज जी का प्रारंभिक जीवन

इनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर के समीप स्थित सरसौल तहसील में सात्विक ब्राह्मण परिवार में हुआ था पिता श्रीशंभूनाथ पांडेय बहुत ही गरीब साधारण किसान और माताजी श्रीमती रामा देवी कुशल गृहिणी थी महाराज जी के बाबाजी सन्यासी थे।
वास्तविक नाम | अनिरुद्ध कुमार पांडे |
जन्म स्थान | अखरी गांव, सरसोल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश |
माता-पिता का नाम | माता रमा देवी जी और पिता श्री शंभू पाण्डेय जी |
गृह त्यागा | 13 साल की उम्र में |
महाराज जी के गुरु | महाराज श्रीगौरंगी शरण जी |
गुरु की सेवा | 10 वर्षो तक |
महाराज की उम्र | 60 वर्ष लगभग |
इस वजह से घर के माहौल में साधु सन्त और ईश्वर की कथाओं का श्रवण इन्होंने ने छोटी उम्र में ही कर लिया था और मन मस्तिष्क में अध्यात्म ज्ञान का एक बीज पड़ चुका था। सन्त प्रेमानंदजी के बचपन का नाम अनिरुद्ध पांडेय था इनके बड़े भाई संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर कथा वाचन का पाठ करते थे महाराज भी बचपन में कथाओं का आनंद लेते थे।
महाराज प्रेमानन्द महाराज की शिक्षा
महाराज जी अपने बचपन के बारे में बताते हैं कि गांव के पास के स्कूल में ही कक्षा 9 तक की शिक्षा ग्रहण की है विज्ञान विषय में उनकी गहरी रुचि थी। वह बताते हैं कि किसान परिवार में साल भर में एक ही बार गेहूं चना बेंचकर आमदनी होती थी बस उसी समय एक जोड़ी कपड़े के कुर्ता और पजामा बनवाते थे रविवार के दिन उसे धुलकर बाकी के दिनों में स्कूल पहनकर जाते थे। कक्षा 5वीं में थे तभी से आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति उनकी रुचि बढ़ी गीता,रामायण और इनकी कहानियों को सुनते और पढ़ते थे।
बाबा प्रेमानंद जी के आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत
बचपन में ही उन्हें जीवन के कई रहस्य वाले प्रश्न उलझन में डालते थे जैसे जब वह 10 साल के थे तो सोचते थे कि एक दिन ऐसा आएगा कि माता पिता भाई बंधु सबकी मृत्यु हो जाएगी फिर मोह माया का क्या मतलब है क्यों न उसकी खोज करें जो हमेशा पास रहे इन सवालों को लेकर कई बार अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार प्रयास करते थे फिर एक समय आया जब वह कक्षा 9 के विद्यार्थी थे और उम्र थी 13 साल और भोर के 3 बजे थे भगवद प्राप्ति के लिए निकल पड़े, श्रीभागवदगीता की किताब, पीतल का लोटा, छोटी सी चटाई और एक चादर लेकर गृह त्याग कर चल पड़े ईश्वर की डगर पर, करीब 15 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद एक भोलेभंडारी का मन्दिर "नन्देस्वर धाम" पड़ा और 13 वर्षीय बालक वहां रुक गया और कई तरह के सवाल मनोभाव में आ गए कि कैसे रहेंगे?
जवाब था जैसे भगवान रखेंगे!
फिर सवाल खाना कौन देगा?
भगवान देंगे!
और अंत में यह दृढ़ निश्चय किया कि यहीं भजन करूंगा और प्राण त्याग दूंगा पर अब घर नहीं लौटूंगा, जैसे प्रभु का आदेश होगा वैसे ही रहेंगे।
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पहली बार घर से निकलकर 13 वर्ष की आयु में महाराज इसी मन्दिर में रुके थे। |
यही सब सवाल सोचते सोचते धूप चढ़ चुकी थी और भूख भी लग चुकी थी काफी समय तक भोजन न मिलने पर मन व्याकुल हो चुका था क्योंकि बाल मन और माता के आंचल तले पला हुआ बच्चा कब तक बर्दाश्त कर पाता।कुछ ही देर के अन्तराल में एक आदमी आया और महाराज(बालक) से पूंछता है कि ए बच्चा...! यहां एक स्वामी सूरदास रहते हैं उनकी कुटिया में ताला लगा है पता है कहां गए हैं तब बालक ने बोला की हमें नहीं पता हम आज ही आए हैं फिर वह आदमी कहता है कि यह (एक डब्बे में मीठा दही) "दही" तुम ले लो वह बाबा जी तो हैं नहीं और अब वापस लेकर नही जाऊंगा और अबोध बालक प्रेमानंद जी ने अपने छोटे से लोटे में 4 बार में पी गए तब उनकी क्षुधा समाप्त हुई और उनका विश्वास ईश्वर के प्रति और अटल हो गया इसके बाद वह शिवलिंग को पकड़कर खूब रोए।
महाराज प्रेमानंद और काशी
नंदेश्वर मन्दिर से जाने के बाद कुछ दिनों तक भटकने के बाद महाराज जी काशी पहुंचे। लगभग आधा जीवन उनका काशी में बीता उन्होंने किसी आश्रम या। छत का सहारा नही लिया अपितु खुले आसमान में रहना स्वीकार किया उनका मत था कि जिस भी हालत में भोलेनाथ उन्हें रखेंगे ज्यों का त्यों रहेंगे।

बनारस में उनका नियम था कि दिन भर के गंगा जी में 3 बार स्नान करेंगे और तुलसी घाट के किनारे स्थित पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर महादेव का ध्यान करेंगे और खाने के समय भिखारियों की पंक्ति में लगभग आधे घंटे इंतजार करेंगे अगर भोजन मिला तो ठीक वरना गंगाजल पीकर ही गुजारा कर लेंगे। इस तरह की दिनचर्या में कई कई बार दिन भर भूंखे रहना पड़ता था और यदि कोई रोटी खाता दिख जाए तो मन में कहते थे कि कितना भाग्यशाली है कि ईश्वर इसे भोजन दे रहा है। ठंड के दिनों में भी वह गंगा जी में 3 बार स्नान करते थे और कपड़े के नाम में बोरे को ओढ लेते थे।
महाराज प्रेमानन्द का वृंदावन आगमन
रोज की तरह तुलसीघाट पर महाराज जी बैठकर ध्यान कर रहे थे तभी भोलेनाथ की कृपा से उनके मन में आया कि कैसा होगा वृंदावन? लेकिन महाराज जी ने उतना ध्यान नहीं दिया अगले ही दिन एक अपरिचित बाबा आए और बोले भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी का विश्वविद्यालय काशी में स्थित है उसमे राम शर्मा आचार्यजी द्वारा आई धार्मिक आयोजन का प्रबन्ध किया जा रहा है जिसमे दिन के समय "चैतन्य लीला" और रात में "रासलीला" का मंचन होगा तो चलो महात्मा लीला का दर्शन करने चलते हैं लेकिन महाराज जी ने मना कर दिया लेकिन वह बाबा जी प्रेमानंद महाराज से काफी बार आग्रह करने लगे कुछ देर में प्रेमानंद जी तैयार हो गए और उस लीला में इतना खो गए कि एक महीने तक चली लीला पता ही नही चली कि कब समाप्त हो गई और जिस दिन मंचन समाप्त हुआ महाराज जी का मन उदास हो गया उन्हें लगा कि क्यों न इस मंचन टोली के साथ रहने लग जाऊं और हमेशा लीला देखूंगा बदले में इनकी सेवा कर दिया करूंगा यह सोचकर संचालक महोदय के पास गए और साथ रहने का आग्रह किया लेकिन महोदय ने कहा कि यह संभव नहीं है तो बाबा ने कहा हम सिर्फ रासलीला देखने के इच्छुक हैं तब महोदय ने कहा कि "बाबा एक बार बृंदावन आ जा बिहारी जी तुझे छोड़ेंगे नहीं" श्रीहित प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि इस वाक्य ने मेरा जीवन बदलकर रख दिया इस वाक्य को उन्होंने गुरुमंत्र मान लिया और उन संचालक महोदय को अपना गुरु।

इस घटना के बाद उनकी दिनचर्या पहले ही जैसी रही लेकिन बस एक चीज और जुड़ गई वह थी कि "मुझे वृंदावन जाना है और कैसे भी जाना है"। समय बीतता गया तुलसी घाट पर एक दिन ध्यान में लीन थे तभी संकट मोचन मन्दिर के पुजारी जी आए और उन्हें बोले की ये लो प्रसाद! लेकिन प्रेमानंद जी ने कहा कि मुझे ही क्यों ये प्रसाद दे रहे हैं तो वह बोले कि हनुमानजी की प्रेरणा मिली है इसलिए और बोले की मेरी कुटिया में चलो और भोजन कर लो।
प्रेमानंद जी गए और अपने वृंदावन जाने वाली बात उनसे कह दिए पुजारी जी जैसे पहले से ही बैठे थे कि बाबा का टिकट वृंदावन के लिए करना है अगले ही दिन उनका टिकट कराकर ट्रेन में मथुरा के लिए बैठा दिया ट्रेन में ही महाराज जी को कई लोग पैसा दे रहे थे लेकिन उन्होंने मना कर दिया फिर कुछ लोगों ने कहा कि रात में हम जहां ठहरेंगे वहीं आप भी रुक जाना और सुबह वृंदावन चले जाना महाराज जी मान गए मथुरा पहुंचकर "राधेश्याम गेस्ट हाउस" के बाहर महाराज जी को बैठाकर उन लोगों ने कहा कि हम अभी अंदर से आपको बुलाएंगे तब आ जाइएगा लेकिन काफी देर हो गई वह लोग नही बुलाए ठंड का समय था महाराज जी बाहर इंतजार कर रहे थे।
लगभग रात्रि के 11 बजा था तभी एक भाई साहब आए और बोले की महाराज जी जय श्री कृष्णा! और पूछा कैसे बैठे हो? तब महाराज जी ने सारा हाल सुना दिया तो वह सज्जन व्यक्ति उन्हें अपने घर ले गए और भोजन कराया रात्रि विश्राम के लिए आश्रय दिया अगले दिन सुबह होते ही यमुना नदी में स्नान किया और वहां से "केशवदेव" जी के मन्दिर और जैसे ही दर्शन किए उन्हें चिल्ला चिल्लाकर रोना आ गया क्योंकि वह भाव में खो गए और कहने लगे कि जैसे जीवन का सार मिल गया हो अब तक का संपूर्ण जीवन व्यर्थ निकल गया इतना सुनते ही चारो तरफ के दर्शनार्थी उन्हें घेरकर जयकारा और फूल माला चढ़ाने लगते हैं। तभी एक श्रद्धालु बोला कि हे बाबा मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं आप आदेश करें तब महाराज जी ने कहा कि मुझे वृंदावन पहुंचा दो उस व्यक्ति ने महाराज के लिए गाड़ी बुक कर दी और गाड़ी वाला ले जाकर "रमन रेती" तिराहे में उतार देता है।
वृंदावन पहुंचने के बाद महाराज जी की भेंट रामसखा महाराज जी से होती है महाराज प्रेमानंद उनसे कहते हैं कि मैं बनारस से आया हूं यदि यहां 3 से 4 दिन रहने की व्यवस्था हो जाए तो अति कृपा होगी इस प्रकार महाराजजी ने वृजवास का आनन्द लिया। इसके बाद महाराज यहां कई सालों तक भिक्षा और यमुना नदी में स्नान कर माता राधारानी का जप करते रहे अब उनका एक स्थान है जहां वह भक्तिभाव से आज के जनमानस को सत्संग सुनाते हैं।
Premanand Ji Maharaj Health (Kidney Failure)
महाराजी बनारस में जब 35 साल की अवस्था में थे तब उनके पेट में बहुत अधिक पीड़ा बढ़ गई थी जिस कारण "रामकृष्ण मिशन" अस्पताल में जांच के लिए गए तो डॉक्टर ने कहा कि आपकी दोनो किडनियां आधे से ज्यादा खराब हो चुकी हैं आपको Polycystic kidney disease नाम की बीमारी है इसमें हजारों की संख्या में गांठे पड़ जाती हैं कभी कभी किडनी फटने का भी डर रहता है यह रोग जेनेटिक होता है और कुछ समय में ही किडनी पूरी तरह खराब हो जाती है और डॉक्टर ने आगे कहा कि तुम्हारे पास ज्यादा से ज्यादा 4 से 5 वर्ष का समय ही बाकी है।
जिस कुटिया में महाराज जी रहते थे वहां से उन्हे निकाल दिया गया महाराज जी कहते हैं कि यह सब लाड़ली राधा की लीला है आज 20 साल से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन ईश्वर की कृपा से स्वस्थ हैं।
Premanand Ji Maharaj Age
कई लोगों के मन में यह सवाल बार बार आता है कि उनकी उम्र कितनी है तो आपको बता दें कि उनकी जन्मतिथि का ब्यौरे का डाटा नही मिलता है जिसकी वजह से कन्फर्म नही है लेकिन महाराज जी के बताए अनुसार लगभग 60 साल है।
Premanand Ji Maharaj Vrindavan Address
महाराज जी का आश्रम वृंदावन में है आपभी जाकर महान संत के दर्शन कर सकते हैं
श्री हितराधा केलीकुंज
वृन्दावन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट, भक्तिवेदांत धर्मशाला के पास में
वृन्दावन-281121
उत्तर प्रदेश
Premanand Maharaj Contact हम उनका नंबर सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं ज्यादा जानकारी के लिए आप उनकी वेबसाइट - Vrindavanrasmahima.com में विजिट कर सकते हैं।
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समापन
अपनी सामर्थ्य के अनुसार महाराज जी की जीवन यात्रा के बारे में आप सबको जानकारी दी है महाराज जी की प्रेरणा से यह पता चलता है कि भगवान को पाने के लिए उनमें समर्पित होना अत्यन्त आवश्यक है यही बात गीता में भगवान श्रीकृष्ण में कही है राधे राधे!