इस धरती में अगर किसी को 'Complete Men' कहा जाए तो वह बेशक भगवान श्रीकृष्ण थे, आज हम श्रीकृष्ण के उन संदेशों पर बात करेंगे जो समाज को सीखना चाहिए।
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भगवान कृष्ण पुरुषत्त्व के आदर्श और उत्तम उदाहरण है उनकी कथाओं में अनेक प्रेरणाएँ है आइये भगवान कृष्ण के अनुसार जीवन के विभिन्न आयामों को कैसे जीना चाहिए
श्रीकृष्ण का बालपन तथा उनसे सीखने योग्य बातें
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वैसे तो मुरलीधर के बारे में अनेकों अनेक कथाएं हैं उनकी बाललीला से समस्त संसार के लिए यह संदेश है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं वह निश्चल होते हैं इसलिए उन्हें स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए, उनकी शैतानियाँ अगर ज्यादा बढ़ जाए तो उन्हें उनके परिपक्वता के हिसाब से सजा भी देनी चाहिए ठीक वैसे ही जैसे माता यशोदा कन्हैया को देतीं थी,उन्होंने कितनी बार रस्सियों से बांध देती थीं।
वहीं पर माताओं के लिए संदेश दिया कि बच्चे किसी के भी हों आपने अपने गर्भ से जन्म दिया हो या किसी और ने लेकिन ममत्त्व तो जगाया जा सकता है हमेशा बच्चों को निश्चल और निःस्वार्थ ममता का प्रसार करना चाहिए। माता यशोदा सबसे अप्रतिम उदाहरण हैं।
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प्रेम (Krishna's Love)
राधे-कृष्ण का प्रेम अनन्त है इसकी कोई परिभाषा ही नही है बस अगर है कुछ तो वो है प्रेम और बस प्रेम,
"प्रेम तो मुक्त करने का नाम है प्रेम कोई बन्धन नही,प्रेम खोने पाने से परे है"
प्रेम विस्तार है, जब तक यह संसार वास्तविकता में रहेगा तब तक हर एक कण में राधा-कृष्ण का प्रेम अंकुरित होता रहेगा। कहते हैं कि प्रेम का आधार और उत्पत्ति ही राधा-कृष्ण से हुई है. इससे आदर्श संसार को प्रेम सीखने के लिए क्या हो सकता है।
मित्रता (Krishna's Friendship)
भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता अप्रतिम है जहाँ कृष्ण एक तरफ राजा हैं वहीं सुदामा भिक्षुक, छल कपट, निःस्वार्थ से परे कृष्ण सुदामा की मित्रता, मित्रता के सारे मापदण्डों को पार कर जाती है मित्रता का चरम है मित्रता सिर्फ देते रहने का नाम है. संसार के लिए यह एक अप्रतिम उदाहरण है मित्रता के आदर्शों को आत्मसात करना है तो कृष्ण-सुदामा की मित्रता से उत्तम कुछ भी नही।
शिक्षा (Shri Krishna Education)
भगवान कृष्ण ने लीला के माध्यम से यह उदाहरण पेश किया कि जब शिक्षा ग्रहण करो तो सारा ध्यान शिक्षण ग्रहण में होना चाहिए। जब वह सांदीपनि मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं तो 7 वर्ष के पाठ्यक्रम को मात्र 64 दिनों में सीख लेते हैं न सिर्फ सीख लेते हैं अपितु परीक्षा भी उत्तीर्ण (pass) करते हैं। 64 दिनों में 64 कलाएँ(अर्थात गायन,खेल,खाना बनाना,नृत्य इस तरह की 64 कलाएँ) 4 वेद, 18 पुराण, उपनिषद, वेदांग अर्थात धरती का सम्पूर्ण ज्ञान मात्र 64 दिनों में. भगवान कृष्ण ने संदेश दिया कि इच्छा शक्ति और मेहनत और डेडिकेशन हो तो कुछ भी पाया जा सकता है।
न्याय (Justice Of Shri Krishna)
जब सम्पूर्ण मानव जाति राक्षसी प्रवत्ति को प्राप्त हो रही थी, बड़े बड़े महारथी दुष्कर्मी हो रहे थे। गुरु द्रोण, महामहिम भीष्म पितामह अंग राज कर्ण जैसे ज्ञानी और प्रतापी लोग एक स्त्री को भरी सभा मे वस्त्र हरण होते हुए देखते रहे,
तब भगवान कृष्ण ने महाभारत का युद्ध रचा अर्थात समस्त पापियों को एक तरफ किया और दूसरी तरफ वो 5 अनभिज्ञ योद्धा और सबको न सिर्फ दंडित बल्कि द्रौपदी को न्याय भी दिया, न्याय का अर्थ सिर्फ दंडित करना नही था अपितु समस्त संसार मे धर्म(सत्य) की स्थापना करना था।
श्रीकृष्ण के मुख "गीता का ज्ञान"
आज भी दुनिया मे श्रेष्ठ ज्ञान की बात आती है तो श्रेष्ठ ज्ञान 'गीता का ज्ञान' माना जाता है ,समस्त संसार मे ऐसी कोई विपत्ति या परेशानी नही है जिसका हल गीता में न मिले, जब महाभारत में अर्जुन युद्ध लड़ने को तैयार नही हो रहे थे तब भगवान कृष्ण ने श्लोकों के माध्यम से यह ज्ञान दिया, यह श्लोक आपको किताब के माध्यम से अर्थ सहित मिल जायेंगे। जब बालपन में थे तो कन्हैया की शरारत थी कि आज भी अगर बच्चा खेले तो उसकी तुलना कन्हैया से होती है।
जब प्रेम की बात आए तो लोग यही कहते हैं कि मोहन की भाँति प्रेम है। जब मित्रता की बात आए तो कृष्ण सुदामा का उदाहरण दिया जाता है। शिक्षा की बात आए तब कृष्ण के ज्ञान का उदाहरण दिया जाता है। न्याय की बात आए तब महाभारत के न्याय का उदाहरण दिया जाता है। ज्ञान की बात आए तब गीता का ज्ञान सर्वश्रेष्ठ है। इससे सिद्ध होता है कि इंसानी जीवन के हर आयाम में भगवान कृष्ण से सीख सकते हैं।
इस लेखन का मूल उद्देश्य भगवान कृष्ण के संदेश थे जो समस्त संसार को उनसे सीखना चाहिए, अपितु उनकी कहानियों का उल्लेख करना नही था।