'महाभारत' का नाम लेते ही भीष्म, दुर्योधन, अर्जुन और कारण जैसे योद्धा मानस पटल में घूमने लगते हैं और घूमे भी क्यों न? महाभारत वह ग्रन्थ है जो आज के समय में भी हमें निर्णय के समय प्रेरणा देता है, परिवार, रिश्ते नातों से लेकर राजनैतिक देशभक्ति तक हर जगह महाभारत के मार्ग का अनुसरण संपूर्ण जीवन सरल कर सकता है।

आज हम बात करेंगे महाभारत के एक ऐसे योद्धा (Veer Abhimanyu) की जो बाल्यकाल में ही वीरगति को प्राप्त हो गया, अपनी महानता और वीरता की वजह से अर्जुन और कर्ण जैसे योद्धाओं से अलग उसकी वीरता के अध्याय हैं, हम बात कर रहे हैं वीर अभिमन्यु की, आइए जानते हैं महाभारत युद्ध के समय किस तरह से चक्रव्यूह तोड़कर कौरवों का मान मर्दन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था।
कौन थे वीर अभिमन्यु
भगवान श्रीकृष्ण की गोद में खेलने वाला यह बालक उन्हें मामा कहकर बुलाता था, श्रीबलराम ने उसे अस्त्रों और शास्त्रों की शिक्षा दी थी, पिता अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु कहलाए।

अभिमन्यु का अर्थ होता है अभि यानी सामने और मन्यु मतलब वीरता व साहस अर्थात जो वीरों की भांति सामना करे, इस नाम का मतलब इस बालक ने महाभारत के युद्ध में सार्थक कर दिया। अभिमन्यु की पत्नी का नाम 'उत्तरा' था व पुत्र का नाम परीक्षित था।
महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु का चक्रव्यूह भेदन
गीताप्रेस की महाभारत के द्रोण पर्व के 45 से 48 अध्याय तक पूरी घटना का विवरण कुछ इस प्रकार से है। सबसे पहले यह जानकारी आवश्यक है कि अर्जुन विराट राजा की मदद के लिए सुसर्मा से युद्ध करने गए थे, दूसरा यह कि दुर्योधन के बहनोई जयद्रथ को यह वरदान था कि वह एक दिन के लिए अर्जुन पांडवों को छोड़कर सभी पांडवों को युद्ध में रोक सकता है।

- युद्ध के 13वें दिन कौरव सेनापति गुरु द्रोण ने एक चक्रव्यूह (पद्मव्युह) की रचना की, इसका उद्देश्य पांडवों में ज्येष्ठ युधिष्ठिर को बंदी बनाना था।
- इस व्यूह में प्रवेश की क्षमता या तो अर्जुन में थी या फिर अभिमन्यु में, अर्जुन थे नहीं तो मोर्चा 16 वर्षीय अभिमन्यु ने मोर्चा संभाला, चारों पांडवों को विश्वास में लिया कि वह इस व्यूह का भेदना जानते हैं।
- अर्जुन और सुभद्रा के वीर पुत्र ने मां के गर्भ में चक्रव्यूह में प्रवेश करने की कला सुनी थी किन्तु उसे भेदकर निकलने की कला वह नहीं जनता था।
- 7 परतों से बना इस व्यूहजाल में प्रवेश करते हुए भरी संख्या में सैनिकों को अभिमन्यु ने लहूलुहान कर दिया।
- द्वितीय द्वार पर कई कौरवों के योद्धाओं को ढेर किया, तीसरे द्वार पर अश्मक के पुत्र सत्यश्रवा और वास्तीय को मौत के घाट उतार दिया।
- चतुर्थ द्वार पर लगे दुर्योधन पुत्र लक्ष्मण से युद्ध हुआ और अंत में लक्ष्मण वीरगति को प्राप्त हो गया।
- पांचवे चरण में दुर्योधन के प्रिय भाई दुशासन को बुरी तरह अभिमन्यु ने पछाड़ा, किंतु वध न कर मूर्छित कर आगे बढ़ गया।
- छठवें जाल में धनुर्धारी कर्ण व उनका पुत्र वृषसेन रक्षक थे, जहां कर्ण को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा, और इस युद्ध में वृषशेन और भाई संग्रामजित की मृत्यु हो गई।
अभिमन्यु का बलिदान
सातवें और अंतिम द्वार पर रक्षक के रूप में गुरु द्रोण, कृपाचार्य, शल्य, कर्ण, शकुनि, अश्वत्थामा व दुर्योधन जैसे योद्धा थे इनके रहते हुए अभिमन्यु ने शल्य के भाई रुक्मरथ का वध कर दिया, बाकी पांडव जयद्रथ के वरदान की वजह से प्रवेश नहीं कर सके और वीर बालक अकेले पड़ गया।

चारों तरफ से वीर शेर को घेर कर युद्ध के नियमों को अनदेखा कर उसे तड़पा कर मारा गया जो कि युद्ध के नियमों के विपरीत था, गुरु द्रोण जैसे महारथियों ने उसके रथ के घोड़ों को मारा वहीं कर्ण ने पीछे से हमला कर धनुष तोड़ दिया, शकुनि ने तलवार से पीठ पर हमला किया और अंत में वह वीर बालक अमर हो गया लेकिन अपनी वीरता के निशान हमेशा के लिए छोड़ गया।
निष्कर्ष
अभिमन्यु के प्राण न्योछावर होने के बाद महाभारत युद्ध के सारे नियम ध्वस्त हो गए, क्रोधित अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर उसका वध किया वहीं भीम जैसे योद्धा ने दुशासन का सीना फाड़ कर उसका रक्त तक पी लिया।
अभिमन्यु की वीरता उसकी उम्र से कहीं ज्यादा थी उसकी वीरगति के बाद कहते हैं भगवान कृष्ण ने कहा कि "हे पार्थ, शोक न करो। अभिमन्यु ने धर्म के लिए युद्ध किया और वीरतापूर्वक लड़ते हुए स्वर्गलोक प्राप्त किया। उसकी वीरता ने कौरवों को भयभीत कर दिया। अब तुम्हें अपने कर्तव्य का पालन करना है।" वैसे आपको महाभारत का कौन सा पत्र सबसे ज्यादा पसंद है, कमेंट में जरूर बताएं।