होली रंगों का त्योहार है इस दिन को सनातन धर्म वाले बहुत ही हर्षउल्लास के साथ मनाते हैं भारत के कई प्रांतों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है भारत के साथ नेपाल में भी होलिका दहन के आयोजन के साथ रंगों और मिठाइयों के साथ जश्न होता है।
लोग इस दिन एक दूसरे को रंग लगाकर गिले शिकवे दूर करते हैं प्रेमी युगल इसे प्रेम उत्सव की तरह देखते हैं तो कहीं बुराई पर सच्चाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। भारत में हर त्योहार के पीछे एक कहानी और इतिहास के साथ एक संदेश छुपा होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति और जीवन शैली के लिए सहायक सिद्ध होती है आइए जानते हैं होली का इतिहास और कहानियां साथ ही 2024 में कब मनाया जाएगा होलिका का त्योहार।
होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है इससे जुड़ी कहानियां, पौराणिक मान्यताएं
भारत में हर बरस फागुन मास की पूर्णिमा के दिन यह त्योहार मनाया जाता है त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर के साथ ही पुरखों की दी हुई विरासत और जीने की कलाओं का एक रूप है। होलिका दहन रंगोत्सव के पर्व से जुड़ी कहानियां हमें सतयुग से ही मिलती हैं जिनका वर्णन हमारी धार्मिक किताबों में देखने को मिलता है होली से जुड़ी 5 कहानियां हम आपको साझा कर रहे हैं।
त्योहार | होली |
अन्य नाम | फगुआ, धुलेंडी, छारंडी (राजस्थान में), दोल |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी, नेपाली, नेपाली प्रवासी |
प्रकार | धार्मिक, सांस्कृतिक, वसंत ऋतु का त्योहार |
महत्व | विजय का प्रतीक, राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का उत्सव, वसंत के आगमन का जश्न |
उत्सव | होलिका दहन, रंगों के साथ खेलना, गाना-बजाना, मिठाइयाँ |
आवृत्ति | वार्षिक |
संबंधित | होला मोहल्ला, याओसांग |
तारीख | 25 मार्च, 2024 |
भक्त प्रह्लाद की कहानी
सतयुग में एक राक्षस था जिसका नाम हिरण्य कश्यप था उसे भगवान ब्रह्मदेव से तपस्या के फलस्वरूप वरदान प्राप्त था कि उसे नर और भगवान कोई नहीं मार सकता इसी वजह से वह अहंकारी हो गया था अपने राज्य में वह खुद की पूजा करवाता था उसका पुत्र प्रहलाद बहुत बड़ा हरि भक्त था वह निरंतर श्री मननारायण का जप करता रहता था जिसकी वजह से उसके पिता ने अनेकों बार मारने का प्रयास किया,
प्रहलाद के पिता की बहन अर्थात बुवा का नाम होलिका था जिसे वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती इसी के चलते होलिका ने भतीजे प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग लगा ली परिणामत: प्रहलाद तो नही जला बुवा का अंत हो गया तभी से होलिका दहन की प्रथा का शुरूवात हुआ और इसे ही बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया गया। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के समय अपने अंदर के समस्त विकारों को आग में जला देना चाहिए।
भगवान शिव ने काम देवता को किया था भष्म
ताड़कासुर नामक एक राक्षस था जिसके वध की नियति भगवान शंकर और पार्वती के पुत्र द्वारा लिखा था लेकिन उस समय तक महादेव का विवाह देवी पार्वती से नही हुआ था और भगवान शिव गहरी तपस्या में लीन थे देवता गण सब ताड़कासुर के प्रकोप से त्राहि-त्राहि कर रहे थे वह सब चाहते थे कि भोलेनाथ का विवाह जल्दी से हो और उन्हे पुत्र प्राप्ति हो जिससे असुर का विनाश हो अतः उन्होंने कामदेव को कहा कि भोले भंडारी की तपस्या भंग करे, कामदेव ने अपना पुष्परूपी बाण चला तो दिया और तपस्या टूटने के क्रोध अग्नि से शिवजी ने कामदेव का अन्त कर दिया।
ब्रम्हा विष्णु समेत आदि सारे देवताओं ने मिलकर महाकाल भगवान को समझाया तब विवाह हुआ और रति के पति कामदेव को पुनर्जन्म दिया यह दिन था फाल्गुन मास की पूर्णिमा का इस दिन को काम वासना पर विजय के रूप में कामोत्सव के उपलक्ष्य में रंग उत्सव का दिन मनाया जाने लगा।
राधा कृष्ण प्रेम के प्रतीक का त्योहार
भगवान विष्णु ने द्वापर में अवतार लेकर श्री कृष्ण के रूप में देवी राधा के साथ बरसाने में होली खेली थी तब से आज भी बरसाने में लठमार और फूलों की होली मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण और माता राधा का प्रेम इस संसार में प्रेम की वास्तविक परिकल्पना से परिचय कराता है आज जो रंग होली में डाले जाते हैं इसकी शुरूवात श्रीकृष्ण के द्वारा राधा के ऊपर रंग डालकर हुई थी इसी दिन को रंग पंचमी के रूप में मनाते हैं।
भगवान विष्णु ने किया था धूलि वंदना
त्रेता के युग की शुरूवात में अपने अवतारों को प्रारंभ करने के लिए श्री हरि नारायण ने ऋषि मुनियों द्वारा यज्ञ के दूसरे दिन धूलि वंदन अर्थात यज्ञ की राख को लेकर अपने शरीर में लगाया था इसी दिन को 'धुलेहिडी' के रूप में मनाया जाने लगा। होली के दिन धूलि वंदन करने के लिए
सुबह उठकर होलिका के स्थान पर पहुंचे, दूध और पानी को मिलाकर होलिका के ऊपर छिड़कें। प्रार्थना के लिए
वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शङ्करेण च ।
अतस्त्वं पाहि नो देवि भूते भूतिप्रदा भव ।।
इस मंत्र का जाप करें इसके बाद होली की राख को शरीर पर रगड़ें और प्रणाम करें।
होली के कुछ ऐतिहासिक तथ्य
पौराणिक और आध्यात्मिक कथाओं और कहानियों में होलिका का वर्णन बहुत जगह मिलता है आइए जानते हैं कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के हिसाब से कि यह त्योहार हमारी सांस्कृतिक का हिस्सा कब से चलता आ रहा है।
- आर्यों के समय में इस त्योहार का पुराना नाम होलका था जिसका अर्थ हुआ अध पका हुआ अनाज।
- इसी होलका अन्न से हवन पूजा की जाती थी और पहला नई फसल का अनाज देवताओं को अर्पण किया जाता था।
- लगभग 5 से 6 हजार सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु घाटी में होली के मनाने के अवशेष मिलते हैं तथा विंध्य प्रदेश में अशोक तथा मौर्यों के समय के अभिलेख मिले थे जिसमे इस त्योहार का वर्णन मिलता है।
- कृष्णदेवराय के समय 16ईसवी में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में एक प्राचीन मन्दिर में होली खेलते हुए चित्र अंकित हैं।
- ऐतिहासिक तथ्यों से यह पता चलता है कि यह पर्व लगभग 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता है और समय के साथ फूलों और रंगों में बदलाव होता आ रहा है।
2024 में होली कब है और होलिका दहन का क्या है मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार आगामी 17 मार्च से होलिका अष्टक की शुरूवात हो जाएगी इस दिन से ही होली के सुचने का कार्य शुरू होता है।
- होलिका दहन 24 मार्च के दिन रात्रि 10 बजकर 28 मिनट के बाद होगा क्योंकि इस समय तक भद्रा योग रहेगा और इस योग में होलिका दहन नही होती है।
- 25 मार्च को होली के रंग खिलेंगे और रंग उत्सव का आनंद होगा।
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होलिका दहन में राग द्वेष की भावना और अपने अन्दर के तमो गुणों को राख करना है और रंगों के माध्यम से अपने अंदर एक नई ऊर्जा का विस्तार करना है। यह रंगों का त्योहार प्रेम सद्भाव को सहेजे हुए हमारी धरोहर है इस दिन मुख्य खानपान में गुझिया और मिठाइयों का आनंद लीजिए आप सभी को होली की ढेरों शुभकामनाएं।