भारत की असल पहचान हमेशा से ही उसकी विविधताओं से है सामाजिक संरचना और वर्गीकरण को समझने के लिए समय-समय पर जनगणना जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते रहे हैं। इनमें जाति जनगणना (Caste Census 2025) एक ऐसा विषय है, जो न केवल सामाजिक और आर्थिक नीतियों को आकार देता है, बल्कि देश की राजनीति और समाज को भी गहरे रूप से प्रभावित करता है।

हाल ही में मोदी सरकार ने अगली जनगणना में जाति आधारित आंकड़े शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। लेकिन क्या है इस फैसले की पृष्ठभूमि? आइए, सरल शब्दों में जानते हैं जाति जनगणना का इतिहास, इसका महत्व और सरकार के इस कदम के पीछे की वजह।
जाति जनगणना का इतिहास: एक नजर
भारत में पहली व्यवस्थित जनगणना ब्रिटिश काल 1871-72 में लॉर्ड मेयो के समय हुई थी, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक नियंत्रण और सामाजिक संरचना को समझना था। उसके बाद हर 10 साल में जनगणना होती रही लेकिन 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण अधूरी रह गई।
आजादी के बाद 1951 में नई जनगणना नीति बनी, जिसमें केवल SC और ST वर्गों को शामिल किया गया था इसके बाद 2011 में कांग्रेस ने SECC(Socio Economic And Caste Census) के जरिए जातिगत डेटा इकट्ठा करने की कोशिश हुई, पर 46 लाख जातियों की जटिलता के चलते यह सार्वजनिक नहीं किया गया, गरीबी आजीविका के आंकड़े 2015 में जारी भी किए गए किंतु जातिगत नहीं, इसके पीछे जातिगत विवादित आंकड़ों के साथ डेटा की अशुद्धता के साथ राजनीतिक कारण माना गया।
वर्ष | घटना | मुख्य उद्देश्य | पृष्ठभूमि व प्रभाव |
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1871-72 | पहली व्यवस्थित जनगणना | सामाजिक वर्गीकरण और प्रशासनिक नियंत्रण | लॉर्ड मेयो की पहल पर, लॉर्ड नॉर्थब्रुक ने लागू किया। जाति, धर्म और पेशा दर्ज हुआ। |
1881–1931 | हर दशक में जाति आधारित जनगणना | सामाजिक संरचना को समझना | 1931 अंतिम वर्ष जब सभी जातियों की विस्तृत गणना हुई। |
1941 | जनगणना अधूरी | डेटा संग्रह जारी रखना | विश्व युद्ध के कारण आंकड़े अधूरे रह गए। |
1951 | स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना | राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना | SC/ST के आंकड़े लिए गए, अन्य जातियां शामिल नहीं। |
2011 | SECC जनगणना | नीति निर्धारण हेतु विस्तृत जाति डेटा | 46 लाख जातियों के कारण डेटा अव्यवस्थित और उपयोग नहीं हुआ। |
2025 | मोदी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय | सामाजिक न्याय और पारदर्शिता | राष्ट्रीय स्तर पर सभी जातियों की गणना का निर्णय, पहली बार बाद आज़ादी। |
मोदी सरकार का फैसला: क्यों और कैसे?
30 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया गया कि अगली जनगणना में सभी जातियों के आंकड़े शामिल किए जाएंगे. आज़ादी के बाद यह पहली बार होगा जब केंद्र सरकार इस स्तर पर जातिगत गणना कराएगी।
तारीख | घटना | मुख्य उद्देश्य | राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ | संभावित प्रभाव |
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30 अप्रैल 2025 | मोदी कैबिनेट ने जाति जनगणना को मंजूरी दी | जातियों की सटीक संख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानना | विपक्ष का दबाव, बिहार का सर्वे, सामाजिक न्याय की मांग बढ़ी | योजनाएं लक्षित होंगी, पारदर्शिता बढ़ेगी, समाजिक विश्वास मजबूत होगा |
2025 की अगली जनगणना | राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार सभी जातियों की गिनती | हाशिए पर रहे वर्गों की पहचान और समावेशिता सुनिश्चित करना | SECC 2011 की असफलता से सबक, सर्वदलीय सहमति की संभावना | संवैधानिक दिशा में बड़ा कदम, ओबीसी और कमजोर वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व मिलेगा |
इसके पीछे कारण क्या हैं?
- जाति आधारित आंकड़े सरकार को शिक्षा, रोजगार और आरक्षण जैसी योजनाओं में मदद, खासतौर पर ओबीसी वर्ग के लिए।
- राहुल गांधी ने इसे सामाजिक न्याय की रीढ़ बताया, जबकि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार द्वारा 2023 में बिहार जातिगत सर्वे ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस में ला दिया था।
- मोदी सरकार का मानना है कि जाति गिनती जैसे संवेदनशील कार्य को केवल राष्ट्रीय स्तर पर पारदर्शी तरीके से ही निष्पादित किया जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत, यह कदम उन पिछड़े वर्गों की पहचान करेगा जो अब भी हाशिए पर हैं और विकास से वंचित हैं। पहली बार इसके अंतर्गत मंडल कमीशन बनाया गया था।
जाति जनगणना के फायदे और चुनौतियां
मोदी सरकार का यह फैसला निस्संदेह एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन इसका असली प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है। सरकार ने संकेत दिए हैं कि 2011 की SECC की कमियों से सबक लेते हुए एक फुलप्रूफ मॉडल तैयार किया जाएगा, इसके लिए सर्वदलीय समिति का गठन हो सकता है, और जल्द ही सभी की राय ली जाएगी।
जाति जनगणना के फायदे | जाति जनगणना की चुनौतियाँ |
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● नीतियों को अधिक प्रभावी और लक्षित बनाने में मदद | ● सामाजिक तनाव की आशंका, जातिगत विभाजन की संभावना |
● ओबीसी और हाशिए पर रहे वर्गों का सशक्तिकरण | ● भारत में हजारों जातियां–उपजातियां, वर्गीकरण व सत्यापन जटिल |
● संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण – शिक्षा, नौकरियां, योजनाएं सही वर्ग तक पहुँचें | ● राजनीतिक दलों द्वारा आंकड़ों का दुरुपयोग संभव |
● सामाजिक असमानताओं पर खुली चर्चा को प्रोत्साहन | ● व्यापक डेटा संग्रह और विश्लेषण प्रशासनिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण |
निष्कर्ष
जाति जनगणना भारत जैसे जटिल और विविधतापूर्ण समाज में एक ऐसा कदम है, जो सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है. इतिहास हमें बताता है कि यह हमेशा से एक संवेदनशील और विचारणीय मुद्दा रहा है। मोदी सरकार का निर्णय केवल एक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक ही नहीं है, अपितु सामाजिक-आर्थिक नीतियों को एक नई दिशा पर पहुंचाने का एक अवसर भी है, आप क्या सोचते हैं इस Caste Census के बारे में कमेंट में अवश्य बताएं।